Charitra Nirman Par kavita/डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र

चरित्र

(Charitra Nirman Par kavita)


व्यापक शब्द,चरित्र
वैविध्य गुणों को लेकर
अपने पेट में न जाने
कितने कालखंड से
आंधी की मार
सहते हुए चला आ रहा है
लोगों की नग्नता ही परोसा
खा रहा है
नहीं चाहता है इलाज़
अपनी समस्याओं के घाव का
क्योंकि
पीड़ा- हरण के नाम पर
तमाम कसाई स्वच्छंद घूम रहे हैं
और गला काटने से पहले
उसको खूब चूम रहे हैं
चरित्र भी इसलिए होशियार हो गया है
अपने मित्र रामू के संग
दिल्ली जाकर सावधान हो गया है
क्योंकि,समझ गया है
इंसानी फ़ितरत अब वह
नहीं चाहता है कि
जो भद्दी गालियां
हमारे पूर्वजों ने
गन्ने के रस की तरह पिया है
और घुट-घुटकर ओसारे में
पूरी रात चांद को देखकर ही सोया है
अब किसी
होरी के चरित्र पर
इसी तरह थूकता रहे कोई
और किसी प्रेमचंद को
एक और गोदान लिखने पर
बारंबार मजबूर करता रहे


Charitra- Nirman- Par- kavita
डॉ. सम्पूर्णान्द मिश्र

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