बादल रूठ गये | नरेंद्र सिंह बघेल

मौसम की आपाधापी में ,
रिश्ते सूख गये ।
बादल रूठ गये रे भैय्या ,
बादल रूठ गये ।।
आज अधूरे सपनों से ,
बाराती छूट गये ।
बादल रूठ गये रे भैय्या ,
बादल रूठ गये ।।

पुरवा पर कर लिया पलट कर ,
पछुआ ने कब्ज़ा ।
ना ही आज मौसमी दशाएं ,
ना ही आज सब्ज़ा ।।
बादल के धरती छूने के ,
प्रचलन छूट गये ।
बादल रूठ गये रे भैय्या ,
बादल रूठ गये ।। 1 ।।
कहीं वृष्टि ,अतिवृष्टि कहीं पर ,
रिमझिम बारिश है ।
मेघ मल्हार नहीं बजते हैं ,
रूठे वारिद हैं ।।
पहुनाई में आए बदरा ,
देहरी चूक गये ।
बादल रूठ गये रे भैय्या ,
बादल रूठ गये ।। 2 ।।
बिन वर्षा के गलियाँ सारी ,
बस्ती रोती है ।
तरु ,पल्लव , किसलय उदास ,
माँ धरती सोती है ।।
उमड़ – घुमड़ कर करते बदरा ,
हमसे दूर गये ।
बादल रूठ गये रे भैय्या ,
बादल रूठ गये ।।3 ।।
ताल ,तलइया , पोखर ,नदिया,
तुमको याद करें ।
दादुर ,झींगुर ,जुगनू ,कोयल ,
सब फ़रियाद करें ।।
लौट के आओ विन्ध्य धरा पर ,
आँसू सूख गये ।
बादल रूठ गये रे भैय्या ,
बादल रूठ गये ।। 4 ।।
यह अभिशप्त धरा पहले से ,
विन्ध्या की थाती ।
ॠषि अगस्त्य सा आगत तकती ,
विन्ध्या की माटी ।।
ॠषि अगस्त्य सम बने ये बदरा ,
हमसे दूर गये ।
बादल रूठ गये रे भैय्या ,
बादल रूठ गये ।। 5 ।।
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
( सब्ज़ा = हरियाली / एक प्रकार तुलसी की तरह का एक औषधीय पौधा जो बरसात में प्राकृतिक रूप से उगता है ।
*** नरेन्द्र ****
16 / 7 / 2024

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *