बघेली में अषाढ़ी दोहे/नरेंद्र सिंह बघेल

प्रसंग वश चल रहे वार्तालाप से उपजे ग्रामीण परिवेश के कुछ बघेली में अषाढ़ी दोहे। प्रथम प्रयास। विनम्रता के साथ गलतियां क्षमा करेंगे।

बघेली में अषाढ़ी दोहे/नरेंद्र सिंह बघेल

१) रोज कल्यावा मा घलै,

सेतुआ गुड़ के साथ ।

छामै दादू ठाट का,

सुधर सुधारै माथ ।

(२) गौरैया चुहकैं लगी,

फुदकै सगल दुआर ।

धूधुर धूधुर लोटिगै,

अब तो पड़ी फुहार।

(३) बरसैं लागे बादरा,

ओरियन लागी धार ।

धरती मां के प्यास का,

बहुत हुआ सत्कार ।

(४) झमाझम बरसात है,

बरसन लागे मेघ ।

मां के अंचरा मा दुबुक,

लूट रहे हैं नेह ।

(५)लये किसनवां हल चला,

दो बैलन के साथ ।

धरती सीना चीरता,

चुऐ पसीना माथ ।

(५) भर अषाढ़ जब खेत मा,

सुगना कतरैं धान ।

गोफना से गूड़ा चलै,

लईके भागैं प्रान ।

(६) सूरन कै ढ़ेई निकसि,

धरती सीना चीर ।

कढ़ी बनी जेउनार मा,

भउजी का भै पीर ।

(७) घर के बारी मा चढ़ी,

खोटलइया कै बेल ।

बनी फिरंगी चउवारे मा,

लड़िकन का भा खेल ।

(८) लये गुड़ंता चल पड़ी,

लड़िकन केरी फौज ।

जीत गुड़ंता अपना,

होय मैदाने मौज ।

(९)दारभरी पूरी बनी,

अउर आम रसधार ।

फूफा जब अइहैं घरै,

तबहिन उघरी पाल ।

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