बनजारों सा जीवन अपना | पीढ़ियॉ झेलेंगी,मार तेरे दंश की।

१. बनजारों सा जीवन अपना

जब-जब याद करोगे प्रियतम,
मलय सुरभि बन छाऊॅगा,
बनजारों सा जीवन अपना,
गीत प्रभाती गाऊॅगा ।टेक।

पावन सरल सहज मनभावन,
उर-वीणा के तार हमारे,
तेरी सुधि की अमराई में,
तान छेड़ते सॉझ-सॅकारे।
बासन्ती मकरन्द लुटाता,
फागुन मन कर जाऊॅगा।
बनजारों सा जीवन अपना,
गीत प्रभाती गाऊॅगा।1।

बहती नदिया चंचल धारा,
एक कभी न हुआ किनारा,
इतना कोई मुझे बता दे,
किसका सपना सजा दुबारा।
सुन्दर स्वप्निल फुलवारी में,
इन्द्रधनुष बन जाऊॅगा।
बनजारों सा जीवन अपना,
गीत प्रभाती गाऊॅगा।2।

भूले-भटके,चलते-फिरते,
सबकी सुनते मन की करते,
जहॉ स्नेह की छॉव मिल गई,
रहे सदा हम वहीं ठहरते।
दुखियारी यह दुनिया सारी,
किसको व्यथा सुनाऊॅगा।
बनजारों सा जीवन अपना,
गीत प्रभाती गाऊॅगा।3।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘ हरीश’

२. पीढ़ियॉ झेलेंगी,मार तेरे दंश की

बात करते जा रहे विध्वंस की,
है किसे चिन्ता प्रकृति के अंश की।1।

क्रूरता वश दे दिया,परिचय बहुत,
कुछ तो परवा कर ले,अपने वंश की।2।

हो रही लज्जित मनुजता आज फिर,
याद आती है दुशासन-कंस की।3।

सोच तू परिणाम अपने कृत्य का,
पीढ़ियॉ झेलेंगी , मार तेरे दंश की।4।

रौंदते हो क्यों किसी के ख्वाब को,
मिल-बैठ अब तू बात कर ले प्यार की।5।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘ हरीश’

३. अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर मातृ शक्ति को सादर,

ममतामयी कहूॅ मॉ तुमको,
स्नेह लुटाती बहना हो,
कोकिल कण्ठी मृदुभाषी,
पत्नी का क्या कहना हो।
शक्ति स्वरूपा नेह-पुंज तुम,
पल-पल पथ दिखलाती-
सुख-समृद्धिमय भाग्य-विधाता,
तुम तो जीवन गहना हो।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’,
रायबरेली (उप्र) -229010
9125908549

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