भारतीय डाक दशक / सीताराम चौहान पथिक
भारतीय डाक दशक
द्रुत गति का यह दौर है ,
द्रुत गति वाहन जाए ।
डाक हमारे देश की ,
घिसट- घिसट कर जाए ।।
द्रुत – गति वाली डाक भी ,
पहुंचे सप्ताह बाद ।
चलन चला अब फोन का ,
क्षण में हो संवाद ।।
डाक उठा कर डाकिया ,
पहुंचा नदियां पार ।
आधी भेटी नदी को ,
आधी घर – घर द्वार ।।
पाती भेजी प्रेम की ,
पहुंची अगले साल ।
प्रिया पराई हो गई ,
प्रेमी हैं बद – हाल ।।
सीमा पर सैनिक लड़ा ,
चिट्ठी में सब हाल ।
पति की पढ़ कर वीरता ,
पत्नी हुई निहाल ।।
चिट्ठी पहुंचे समय पर ,
खुलें प्रगति के द्वार ।
धन्य- धन्य वह डाकिया ,
जिसकी कॄपा अपार ।।
डाकपाल जी डाक में ,
कर लो शीघ्र सुधार ।
इण्टरनेट के दौर में ,
मंद पड़ेगी धार ।।
द्रुत साधन संचार के ,
नित तकनीकी ज्ञान ।
डाक- व्यवस्था लचर है ,
सुनो , खोल कर कान ।।
बीते दिन महिना भया ,
कहां हमारी डाक ?
साहित्य पत्रिका के बिना ,
सब खुशियों हैं खाक ।।
डाक हमारी समय पर ,
पहुंचाओ श्री मान ।
पथिक – क्रोध यदि बढ़ गया ,
पकड़ोगे फिर कान ।।
सीताराम चौहान पथिक
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