पुरानी दिल्ली के प्लेटफार्म नंo 11 पर लिखी एक रचना | ट्रेन की प्रतीक्षा में

पुरानी दिल्ली के प्लेटफार्म नंo 11 पर लिखी एक रचना-ट्रेन की प्रतीक्षा में -दिल्ली से बाहर हूँ जब से होश सँभाला हूँया यूँ कहिए कि देखता आ रहा हूँमुर्दा बचपन … Read More

अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस | 21मई | सम्पूर्णानंद मिश्र

अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस(21मई) चायभले ही न होअमृत लेकिनअमृत से कम भी नहीं है यह रिश्तों को पकाती हैटूटे हुए दो दिलों को आपस में मिलाती है जब फटने लगती हैरिश्तों … Read More

मरने लगते हैं आप | सम्पूर्णानंद मिश्र

मरने लगते हैं आप | सम्पूर्णानंद मिश्र मरने लगते हैं आप मरने लगते हैंआप धीरे- धीरे जब आपकी जिह्वासो जाती हैकिसी की तारीफ किए बिना मर जाते हैं आपजब नहीं … Read More

निष्कलंक तंतु (विरह गीत) | भारमल गर्ग “विलक्षण”

निष्कलंक तंतु (विरह गीत) 🌸 कालिंदी की लहरों में बिखरा, निशि का नीरव संवाद,  तुम्हारी याद का अग्नि-कण, जलता है अधरों पर आज।  विधाता के लेखनी से टपका, विषाद का अमृत-बूँद,  क्योंकर भरूँ … Read More

चुटकी भर सिंदूर | जनकवि सुखराम शर्मा सागर

चुटकी भर सिंदूर | जनकवि सुखराम शर्मा सागर चुटकी भर सिंदूर सातों वचनों से जो बंध जाए,चुटकी भर सिंदूर मांग भर जाए,तात मात अवलंब ढूंढ ढूंढ कर,घरी धरोहर वापस कैसे … Read More

ऋणी तुम्हारा कण-कण भारत। मातृभूमि की सदा वन्दना |हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

गीतशीर्षक:- ऋणी तुम्हारा कण-कण भारत। भगत सिंह,सुखदेव,राजगुरु,सबको नमन हमारा है,ऋणी तुम्हारा कण-कण भारत,तुमने इसे सवॉरा है।टेक। सत्य-सनातन के प्रहरी तुम,शत-शत वन्दन-अभिनन्दन।भाल सजाती अलख जगाती,भरत-भूमि की माटी चन्दन।काश्मीर से अन्तरीप तक,होता … Read More

गौरैया दिवस | जनकवि सुखराम शर्मा सागर

गौरैया दिवस | जनकवि सुखराम शर्मा सागर । गौरैया दिवस । प्रकृति प्रदत्त है दुनिया सारी ,हर जीव एक दूसरे पर आभारी,आओ मिल गौरैया दिवस मनाए ,मित्र हमारी गौरैया सबको … Read More

कविता – प्रकृति की सुंदरता | आकांक्षा सिंह ‘अनुभा’

कविता – प्रकृति की सुंदरता———————————— देखो ये नज़ारे, सब हैं साथ तुम्हारे,जी लो इस पल को तुम, हैं ये पल तुम्हारे,देखो ये नज़ारे, सब है साथ तुम्हारे…….! देखो इन पंछी … Read More

मुड़े हम आज जगत से जगदीश्वर की ओर | विश्वास ‘लखनवी’

मुड़े हम आज जगत से जगदीश्वर की ओर | विश्वास ‘लखनवी’ मुड़े हम आज जगत से जगदीश्वर की ओरनिगल कर मधुर तमस की निशा हुई है भोर हुये उत्तीर्ण किये … Read More

हे नाथ तुम्हारी दया-दृष्टि से | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश’

हे नाथ तुम्हारी दया-दृष्टि से,जग का सारा काम हो रहा।कण-कण में दिखती नई चेतना,नवल भोर सुखधाम हो रहा।टेक। नित कल-कल,छल-छल नदिया बहती,नित झर-झर निर्झर झरता है।तेरे चॉद-सितारों से ही,यह अम्बर … Read More

वसंत | बी.के. वर्मा शैदी

वसंत इत-उत, जित-जित ओर चितै,खिलै चित,प्रकृति-रचित कन-कन में वसंत है।वन-उपवन,कलियन औ’ सुमन मांहिं,अवनि,गगन में,सबन में वसंत है। साँस-साँस मधुमास की सुवास कौ निवास,मन में,बदन में,दृगन में वसंत है। पीत रंग,प्रीति … Read More

लगन के आगे मंजिल क्या ? | अनुज उपाध्याय

लगन के आगे मंजिल क्या ? लगन के आगे मंजिल क्या,किरण के आगे बादल क्या,दृष्ट के आगे दर्पण क्या,सृष्टि से बढ़के अर्पण क्या,जीवन से बढ़कर झूठा क्या है,मौत से बढ़कर … Read More

मज्जन फल पेखहिं तत्काला | सम्पूर्णानंद मिश्र

मज्जन फल पेखहिं तत्काला निःसंदेह शरीर भीगता हैमज्जित होने से लेकिनआत्मा नहीं आत्मा तो भीग सकती हैसिर्फ और सिर्फविचारों की पवित्रता के जल से नकारात्मकता की चादर की कुज्झटिकाओं सेजब … Read More

संस्पर्श | सम्पूर्णानंद मिश्र

लालच विहीन आँखेंदेखना चाहती हैंछूना चाहती हैंऔर चाहती हैं कुछ वक्तअपनी संतति से लेकिन भौतिकता कीअंधी दौड़ मेंआज की पीढ़ीसस्ते दामों मेंअपना वक्तबेचकरजब घर आती है तो वह फूली नहीं … Read More

हारे हुए लोग कहाँ जायेंगे ? ? | रिंशु राज यादव

हारे हुए लोग कहाँ जायेंगे ? ? हारे हुए लोगों के लिए कौन दुनिया बसाएगा?उन पराजित योद्धाओं के लिए ,तमाम शिकस्त खाए लोगों के लिए। प्रेम में टूटे हुए लोग,सारी … Read More