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Corona ek aaeena- कोरोना एक आईना

Corona ek aaeena : कोरोना एक आईना / सीताराम चौहान पथिक  की रचना  समाज को सन्देश देना चाहती है कि  कोरोना जैसी महामारी के दौरान  दलालों ने खूब लूटा  आम आदमी को , जहाँ हर व्यक्ति अपने सगे संबंधी  को  बचाने  में रात  दिन एक कर दिया लेकिन बचा नहीं पाया।   दलालों  ने शवों  के  नाम पर दलाली की , हर जगह  लूट  चल रही थी वो ऑक्सीजन का सिलिंडर हो , इंजेक्शन के नाम  पर , एम्बुलेंस के  नाम पर  आदि।  लेखक  का  उन  सभी  देश के दुश्मनो को संदेश है कि अभी भी समय है सुधर जाओ नहीं तो भगवान की लाठी में आवाज़  नहीं होती उसका दण्ड  तुम नहीं झेल पाओगे।  प्रस्तुत है रचना :-

कोरोनाः एक आईना


कोरोना ने छुट्टी कर दी ,
मेरे कई सवालों की ।
खाल भेड़ की पहन भेड़िए ,
देखी करतूत दलालों की ।

देश मिटे तो मिट जाए ,
कमी नहीं गद्दारों की ।
अपनी ही माटी के दुश्मन ,
सुर्खी बने अखबारों की ।

कोरोना ने पोल खोल दी ,
सच्चे झूठे यारों की ।
संक्रमित  लाश अपनों ने छोड़ी ,
भर आई आँख  सितारों की ।

कोरोना ने कमर तोड़ दी ,
बे-रोजगार कामगारों की ।
भूखों को भरपेट खिलाते ,
वाह-वाह लंगर  गुरुद्वारों की ।

डॉक्टर और नर्सों को देखो ,
खिदमत करते दुखियारो की।
खुद कोरोना- भेंट चढ़ गये ,
दुआएं बटोर  सरकारों की ।

दूजी ओर कोरोना योद्धा ,
चिंताएं छोड़  परिवारों की ।
अस्पताल -शमशान ड्यूटियां,
दास्तान है यह अंगारो की ।

सोचो तुम शैतान फरेबियो ,
मिट जाओगे इन अंधियारो में
साथ नहीं कुछ ले जाओगे ,
सिर पीटोगे अंधियारो में ।

वक्त अभी है संभल जाओ ,
छोड़ो घटिया हथियारों को ।
अच्छे काम पथिक कर डालो,
याद करो– उजियारों को ।।

१, आईना – दर्पण ,२.  सुर्खी- शीर्षक ३. दास्तान – जीवन गाथा ,  ४ . फरेबियो – जालसाजों


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सीताराम चौहान पथिक

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