दे दे रे करवा मॉ वर दे | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश
दे दे रे करवा मॉ वर दे | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश‘
दे दे रे करवा मॉ वर दे,
अमर सुहाग रहे सबका ।
स्नेह -सिन्धु में गोता खायें,
मस्त मुदित हो हर तबका ।टेक।
उर-वीणा के तार-तार में,
नव स्वर,गति,लय दे।
अंग-अंग में प्रणय छलकता,
उर भर भाव विनय दे ।
श्राप,पाप,सन्ताप मिटा दे,
पन्थ प्रशस्त रहे जग का।
दे दे रे करवा मॉ वर दे,
अमर सुहाग रहे सबका।1।
उर मंजुल भाव प्रसून झरे,
दृग-अम्बुज नेह-निमंत्रण दे।
समभाव रहे दुख-सुख सब पर,
इन्द्रिय पूर्ण नियंत्रण दे।
भूल-चूक सम्भव हो जाये,
अपराध क्षमा करना सबका।
दे दे रे करवा मॉ वर दे,
अमर सुहाग रहे सबका।2।
प्रियवर प्रियतम प्रिय रहें सदा,
विश्वास की डोर अटूट रहे।
सब साथ चलें जीवन-पथ पर,
मतभेद न हो ना फूट रहे।
सुत ‘हरीश’,कर रहा निवेदन,
उत्थान सदा करना सबका।
दे दे रे करवा मॉ वर दे,
अमर सुहाग रहे सबका ।3।
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