धरती पुत्र | हिंदी कविता | पुष्पा श्रीवास्तव शैली

धरती पुत्र | हिंदी कविता | पुष्पा श्रीवास्तव शैली

धरती पुत्र

सर पर बांधे गमछे से पसीना
सुखाते हुए कभी धरती पुत्र को
देखा है?
देखा है कभी उन पांवों को जो
तपती धूप में भी
बिना जूते के रफ्तार लिए रहते हैं।
देख कर आना कभी
गांव की उस नवेली दुल्हन को
जिसकी मुलायम लेकिन मजबूत
हथेलियां फसल की कटाई को
तैयार हैं।
आम के पेड़ के नीचे बैठ कर
ठंडी हवा से पूछना कि
उसकी गोद में इनको
नींद कैसे आती है।
तुम भी सोना तनिक देर
उस गर्मी की ठंडी छांव में।
महसूस करना कि
तुम्हारे बंगले के एसी
और वहां की ठंडाई में
क्या फर्क है?
कोशिश करना ज़रा
धरती पुत्र बनने की
मेरे सुकुमार लड़लों।।

पुष्पा श्रीवास्तव शैली

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