Gopi Hindi Geet- गोपी की पुकार/ सीताराम चौहान पथिक
Gopi Hindi Geet- गोपी की पुकार / सीताराम चौहान पथिक
गोपी की पुकार
मेरे मन के वृंदावन में ,
छेड़ी है छलिया ने तान ।
रोम- रोम पुलकित हुआ है,
प्रिय , सुनाओ फिर वो तान।
युगों-युगों के कर्ण पियासे ,
सुनने को मधुकर की तान।
हे निर्मोही– कहां छिपे हो ,
मर्दन कर गोपी का मान ।
आज अचानक सुनी बांसुरी ,
मंत्र – मुग्ध बेसुध सी दौड़ी ।
गोकुल के कण कण को छाना ,
हाथ लगी ना कानी कौड़ी ।
हे श्यामा – कान्हा मनमोहन ,
वहीं पुरानी तान सुना दो ।
राधा संग गोपियां मिल हम ,
रास रचाएं दृश्य दिखा दो ।
यमुना के सूने से तट पर ,
भटक रहीं गैयां बेचारी ।
बिलख बिलख कर तुम्हें निहारें ,
गौ- पालक हम शरण तिहारी
हे नटवर नट नागर मोहन ,
कितनी बार छिपोगे हम से ।
द्वापर से हम बाट निहारें ,
निर्मोही , मिल जाओ हम से।
रे कॄष्णा – क्या भूल गए तुम ,
अपनी मधुर मोहिनी मुरली ॽ
तुमसे ही तो पूर्व जन्म में ,
ऐठी थी – मैंने वह मुरली ।
आओ , हे मन- रसिया मोहन,
तान सुना दो वहीं पुरानी ।
लें जाओ अपनी बांसुरिया ,
पथिक बना अपनी दीवानी ।।
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