happy women day poem -बेटी/ प्रेमलता शर्मा
बेटी
(happy women day poem)
एक औरत बेटी को जन्म देकर
कभी वह हस्ती कभी वह रोती है
विधाता तूने क्या सौगात दी है
ईश्वर से वह सवाल करती है
बेटा हो या बेटी हो लेकिन
मां बनने का सौभाग्य सुखद होता है
यह तो बस एक मां ही जाने
और भला कौन जाने हैं
बांझ शब्द ना सुनने मिले
सूनी गोद भर जाती है
लेकिन समाज के नियम
निराले फर्क दोनों में बाटे हैं
बेटी के आने पर मातम
बेटे की खुशी मनाते हैं
मैं पूछती हूं इस समाज से
सीता सावित्री और लक्ष्मीबाई भी
तो किसी मां की बेटी थी
क्या उन्हें जन्म देकर उनकी
माताओं की कोख शरमायी थी
फिर समाज क्यों बेटे और बेटी में फर्क करें
क्यों बेटी को दुत्कारे हैं
यह बेटों से बेहतर है
आज वह साबित करती हैं
इन्हें गले लगा कर तो देखो
यह मात-पिता की सच्ची हितकारी हैं
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