हर घड़ी याद आती रही है तेरी | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’ | हिंदी कविताएं

हर घड़ी याद आती रही है तेरी

कट गई जिन्दगी बस-सफर में मेरी,
हर घड़ी याद आती रही है तेरी।1।

बागबॉ बन हिफाजत मैं करता रहा,
हर कली में थी खुशबू समाई तेरी।2।

बात दीगर है तुमने जो चाहा नहीं,
धड़कनों में हैं सॉसें,समाई तेरी।3।

ख्वाब में जब मिलीं मुसकुराती हुई,
बेबसी सी नजर में झलकती तेरी।4।

दस्त छू न सके मखमली वह बदन,
थांग तुमने लिया थी इनायत तेरी।5।

खता हो गई हो अगर कोई मुझसे,
माफ करना मुझे मेहरबानी तेरी।6।

खुशियॉ जिसे नसीब होती हैं जहॉ में,
उसे खोजती रही ये जिन्दगी मेरी।7।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश;

2 . जीवन का कटुसत्य मुझे

गीत
जीवन का कटुसत्य मुझे,
कहना है,कह लेने दो।
निठुर नियति का दंश मुझे,
सहना है ,सह लेने दो।टेक।

गिरि,द्रोण,पठारों सा जीवन,
नित रहा ढ़ूॅढ़ता बृन्दावन।
उलझ-उलझ कर संघर्षों में,
भूल गया अपना मधुवन।
मस्त समीरण शूल दे रहे,
सहना है,सह लेने दो।
जीवन का कटुसत्य मुझे,
कहना है,कह लेने दो।1।

हर कोई आतुर चलने को,
मखमली छॉव में साथ मेरे।
अकस्मात् सुधियों में आते,
कल छूट गए जो हाथ तेरे।
दृग-कोरों में भरे अश्रु को,
बहना है,बह लेने दो।
जीवन का कटुसत्य मुझे,
कहना है,कह लेने दो।2।

रहा मॉगता प्रियवर सबसे,
स्नेहिल ऑचल छॉव मुझे दो।
स्नेह-दया-ममता आपूरित,
रुचिकर पावन गॉव मुझे दो।
निशा नटी के साथ मुझे ,
रुकना है,रुक लेने दो।
जीवन का कटुसत्य मुझे,
कहना है,कह लेने दो।3।

नहीं किसी ने पथ दिखलाया,
बस रहा भटकता राहों में।
सम्भव तृप्ति हृदय को मिलती,
प्रिय मृदुल तुम्हारी बॉहों में।
उर निर्झर की चाह सिन्धु में,
झरना है, झर जाने दो।
जीवन का कटुसत्य मुझे,
कहना है,कह जाने दो।4।

रचना मौलिक,अप्रकाशित,स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित है।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ हरीश;
रायबरेली (उप्र) 229010

3 . ये दर्द मेरा अपना,दुनियॉ को क्या पड़ी है।

सबको ये राजे-उल्फत,बताया न कीजिए,
यूॅ दर्दे-गम में ऑसू बहाया न कीजिए।1।

दीवाना मैं हुआ हूॅ बस तेरे प्यार में,
थोड़ी रहम करो सताया न कीजिए।2।

हौंसले थे साथ मैं तुम्हारा हो गया,
एहसाने-हुश्न मुझ पे जताया न कीजिए।3।

क्या लोग कह रहे हैं कुछ भी पता नहीं,
इल्ज़ाम आप मुझपे लगाया न कीजिए।4।

ये दर्द मेरा अपना दुनियॉ को क्या पड़ी है,
रहने दो मुझको यूॅ हीं जलाया न कीजिए।5।

है शौक अगर तुझको तू पास मेरे आ,
हूॅ पास दूर रह के बताया न कीजिए।6।

मुकद्दर था प्यार तेरा मुझको सनम मिला,
रेवड़ी समझ के सबको लुटाया न कीजिए।7।

रचना मौलिक,अप्रकाशित,स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित है।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश;
रायबरेली (उप्र) 229010

4 . करें हम भारत का ऋंगार।

करें हम भारत का ऋंगार,
सनातन हो अपना आधार।
करें सब नई प्रतिज्ञा आज,
बनें सब देश के पहरेदार।टेक।

कण-कण का ऋण हमें चुकाना,
स्नेह,दया,सहयोग निभाना।
मलय बसन्ती रंग बिखेरे,
ज्ञान दीप की शिखा जलाना।
मनहर ऋतुओं की अंगड़ाई,
स्नेहिल आग जले संसार।
करें हम भारत का ऋंगार।
सनातन हो अपना आधार।1।

नवल ओज उल्लास भरा मन,
भितरघात से पीड़ित जन-जन।
देश – द्रोह के नये मुखौटे,
लो जला रहे हैं आज वतन।
राष्ट्र-धर्म की नव परिभाषा,
सुलग रहा बन कर अंगार।
करें हम भारत का ऋंगार,
सनातन हो अपना आधार।2।

कोटि-कोटि बलिदान हो गए,
नर-नारी,कृषक जवान हो गए।
अस्मिता देश की जा न पाये-,
होकर शहीद महान हो गए।
गर्व हमें हम हिन्दू कह लो,
दिया प्रकृति ने नव उपहार।
करें हम भारत का ऋंगार,
सनातन हो अपना आधार।3।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश;
रायबरेली (उप्र) 229010

5 . महकूॅगा बन के चन्दन,मुझको पुकार लो।

दो पल मिले तो प्यार से,मुझको निहार लो,
मिट्टी में मिल ना जाऊॅ,आकर सवॉर लो।1।

मैंने तुम्हारे प्यार में,क्या-क्या नहीं किया,
तुम चाहो अगर खुशी से,यह सिर उतार लो।2।

कल लोग क्या कहेंगे,परवा नहीं है इसकी,
बॉहों में साथ बॅधकर,दो पल गुजार लो।3।

खुशबू को जो तरसता,कहते न गुल उसे,
महकूॅगा बन के चन्दन,मुझको पुकार लो।4।

जंगल कहीं जले,उठता रहे धुऑ,
दो पल को पास आकर,मुझको पुकार लो।।5।

यह हुश्न यह जवानी,दो दिन का खेल है,
बाकी बचा मुकद्दर,तनहॉ खुमार लो।6।

अपना बना के मुझको,दिल तोड़ना नहीं,
खुद का न दे सको तो,मुझसे उधार लो।7।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश;
रायबरेली (उप्र) 229010

6 . चटपट चटनी-चूरन दे दो।

पहले अपने पैसे लो,
दादी टॉफी मुझको दो।1।

दस वाला यह सिक्का लो,
बिस्कुट पैकेट भुजिया दो।2।

गुब्बारे कुछ मुझको लेना,
नहीं खिलौने दादी देना।3।

चटपट चटनी चूरन दे दो,
झटपट जल्दी दादी कर दो।4।

देर हुई तो मार पड़ेगी,
मैडम हों तो डॉट पड़ेगी।5।

हो इनाम वह पुड़िया लूॅगा,
मैं भी दादी गुड़िया लूॅगी।6।

बच्चों जल्दी नहीं मचाओ,
कविता कोई नई सुनाओ।7।

हॅस कर खुशियॉ बॉटो बच्चों,
मिल-जुल राह बनाओ बच्चों।8।

रचना मौलिक,अप्रकाशित,स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित है।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश;
रायबरेली (उप्र) 229010

7 . सूख गई सब ताल-तलैया।

फट गया कलेजा धरती का,
तरु-तर झुलस रहे हैं,
सूख गई सब ताल-तलैया,
खग-कुल फफक रहे हैं।टेक।

छलनी हुआ मलय का ऑचल,
पीर पवन की कौन सुनाये,
जहॉ भोरहरी लगे दुपहरी,
कब सॅझवाती दीप जलाये।
नयन-कोर के ऑसू सूखे,
अम्बर देख रहे हैं।
फट गया कलेजा धरती का,
तरु-तर झुलस रहे हैं।1।

पुरवैया-पछुवा सब मिलकर,
धमा चौकड़ी करते हैं,
देख व्यग्रता मौसम की,
बादल रूप बदलते हैं।
बज्जर छाती है किसान की,
सपने टॉक रहे हैं।
फट गया कलेजा धरती का,
तरु-तर झुलस रहे हैं।2।

जीवन दाता दिनकर सुन लो,
नव-जीवन अंकुरण करो।
हरी-भरी धरती हो अपनी,
सुख-समृद्धि संचरण करो।
मुक्ति ताप से,रिमझिम पावस-,
-पन्थ निहार रहे हैं।
फट गया कलेजा धरती का,
तरु-तर झुलस रहे हैं।3।

रचना मौलिक,अप्रकाशित,स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित है।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश;
रायबरेली (उप्र) 229010

8 .योग

सुन्दर ,स्वस्थ-निरोग हों,ईश्वर का उपहार,
हरपल बॉटे जो सदा,सरल हृदय नव प्यार।1।

साथ प्रकृति के हम रहें,साथ करें नित योग।
चित्त प्रफुल्लित नेह से,नहीं रहेगा रोग।2।

उठो,जगो तुम योग से,रच दो नव इतिहास।
सहज साथ तुमको मिला,धरती,जल,आकाश।3।

वन-उपवन,तरु,वाटिका,देते नित सन्देश।
स्वच्छ नेह-पूरित धरा,रचो योग परिवेश।4।

ज्ञानवान बन सृजन के,खोलो नूतन द्वार।
रोम-रोम हो दिव्यता,मोदमयी आगार।5।

जबतक जितनी सॉस है,भोग करो भरपूर।
परहित-रत,हो योग से,चमको बनकर नूर।6।

महर्षि पतंजलि ने दिया,सुन्दर सुखद विज्ञान।
विश्व-पटल पर बढ़ रहा,भारत का सम्मान।7।

शीतल तन-मन,भाव हों,चलो योग की छॉव।
आकर्षण हर अंग में,सुख-समृद्धिमय पॉव।8।

योग करो नित भोर में,लेकर प्रभु का नाम।
सिर ऊॅचा तप-तेज से,नेह करें श्रीराम।9।

कवि ‘हरीश’ नित योग से,शुरू करें हर काज।
अन्तर्मन सन्तुष्ट हो,जीने का अन्दाज।10।

रचना मौलिक,अप्रकाशित,स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित है।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश;
रायबरेली (उप्र) 229010

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