hastaakshar-biyaabaan-ka

हस्ताक्षर बियाबान का /सम्पूर्णानंद मिश्र | New Poetry

हस्ताक्षर बियाबान का /सम्पूर्णानंद मिश्र | New Poetry

हस्ताक्षर बियाबान का


कोसा जा रहा है
वक़्त को इस समय
कि ज़ालिम है
बेरहम है
हस्ताक्षर है
उजड़े बियाबान का
सिंदूर सिर्फ़ पोंछता है
मढ़ रहे हैं अनेक
आरोप- प्रत्यारोप
नाप रहे हैं
इसके शुतुरमुर्गी गर्दन को
फंदा लेकर हाथ में
लटका देंगे सूली पर
ज़मींदोज़ हो जायेगी
सारी कहानी
गुनाह फिर कैसे बोलेगा ?
अपना मुंह खोलेगा
नहीं देखना चाहता है
चेहरा अपना
अपनी आत्मा के शीशे में कोई
क्योंकि विद्रूपता मुंह बिरा रही है
अतीत के अध्याय पढ़वा रही है
बार- बार चीख चिल्ला रही है
नदियों में धोए पापों को गिनवा रही है
जब अपने पर आ पड़ी है
समस्या ड्योढ़ी पर खड़ी है
तो प्रकृति याद आ पड़ी है


hastaakshar-biyaabaan-ka

सम्पूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर
7458994874

आपको  हस्ताक्षर बियाबान का /सम्पूर्णानंद मिश्र | New Poetry  रचना कैसी लगी , पसंद आये तो समाजिक मंचो पर शेयर करे इससे रचनाकार का उत्साह बढ़ता है।हिंदीरचनाकर पर अपनी रचना भेजने के लिए व्हाट्सएप्प नंबर 91 94540 02444, 9621313609 संपर्क कर कर सकते है। ईमेल के द्वारा रचना भेजने के लिए  help@hindirachnakar.in सम्पर्क कर सकते है|

अन्य  रचना पढ़े :

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *