Hawa par kavita- हवा पर छोटी कविता

Hawa par kavita- हवा पर छोटी कविता

हवा /वायु


प्राण वायु की अहमियत अब पता चल रही है,
कोरोना से हर गली जल रही है।

बड़े-बड़े दरख्तों को,
काट कर जो गलती की है।

अपनी आंखों से खुद देख,
इसी की सजा आज हमें मिलती है।

देश में आक्सीजन की कमी खल रही है,
कोरोना से हर गली जल रही है।

हे मानव तू तो बहुत बलवान था,
अब बता बौना क्यों हो गया है।

अपनी औकात देख,
प्रकृति के आगे
बौना  क्यों हो गया है
तेरी हर ख्वाहिस तुझे छल‌ रही है।
कोरोना से हर गली जल रही है।

आक्सीजन सिलेंडर की होड़ मची है,
पाने के लिए दौड़ मची है।

काला बाजारी पल रही है,
कोरोना से हर गली जल रही है।

हे मानव अभी समय है,
खूब पेड़ो को लगायें,
आक्सीजन से जान बचायें।

आशायें अभी भी उछल रहीं हैं,
कोरोना से हर गली जल रही है।

प्रकृति की‌ छत्र छाया में यदि रहेगें,
सच कहता हूं
तभी जीवित बचेंगे।

जिन्दगी बर्फ की तरह गल रही है,
कोरोना से हर गली जल रही है।

गाड़ी,बंगला,एसी,कार,
इस समय सब हैं बेकार।

जांन बच जाय किसी तरह,
मनुष्य कितना है लाचार।

सारी हिकड़ी पिघल रही है,
कोरोना से हर गली जल‌ रही है।


Hawa- par- kavita
दुर्गा शंकर वर्मा “दुर्गेश” रायबरेली।

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