हे नाथ तुम्हारी दया-दृष्टि से | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश’
हे नाथ तुम्हारी दया-दृष्टि से,
जग का सारा काम हो रहा।
कण-कण में दिखती नई चेतना,
नवल भोर सुखधाम हो रहा।टेक।
नित कल-कल,छल-छल नदिया बहती,
नित झर-झर निर्झर झरता है।
तेरे चॉद-सितारों से ही,
यह अम्बर प्यारा सजता है।
न्यारी प्रतिभा प्रिय हरीश की, ,
जल-थल-नभ अभिराम हो रहा।
हे नाथ तुम्हारी दया-दृष्टि से,
जग का सारा काम हो रहा।1।
नित मधुर सलोनी मलयज पूरित,
भर ऑचल पवन बहॅक जाता,
प्रिय मातृभूमि का कण-कण पावन,
बन चन्दन सहज महक जाता।
सत्य सनातन न्याय पन्थ पर,
कर्म-सृजन निष्काम हो रहा।
हे नाथ तुम्हारी दया-दृष्टि से,
जग का सारा काम हो रहा।2।
उल्लास भरा सम्बन्धों से जग,
हितकारी परिवेश सजायें नग।
नित नियति-नटी के इन्द्रधनुष से,
यह झिलमिल अम्बर रहता जगमग।
ऋतु-परिवर्तन साथ समय के,
सुबह-दोपहर-शाम हो रहा।
हे नाथ तुम्हारी दया-दृष्टि से,
जग का सारा काम हो रहा।3।
हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश;
दिल्ली /रायबरेली