hindi diwas par jankari – हिंदी हमारी है/दयाशंकर

 

hindi diwas par jankari : सरकार अपने स्तर पर, हिंदी कार्यक्रम, प्रतियोगिताएँ,परिचर्चाएँ, संगोष्ठियाँ, सम्मेलन, बैठकें और नृत्य, गीत-संगीत के कार्यक्रम आदि हिंदी के लिए कराती हैं, विश्व में उतने कहीं नहीं होते है लेकिन दूसरी तरफ इन सबके बावजूद भी राज्य सरकारों और उनके  विभिन्न संस्थानों आदि के द्वारा आज भी देश में थोड़ा बहुत हिंदी का इस्तेमाल भले ही होता हो लेकिन अधिकांश कार्य अंग्रेजी में ही होता है। स्वतंत्रता के समय देश की 99% से भी बहुत अधिक लोग मातृभाषा में ही पढ़ते थे। लेकिन अब छोटे-छोटे गांवों तक अंग्रेजी माध्यम पसर चुका है। हिंदी को देश-विदेश में फैलाने वाली हिंदी फिल्में और धारावाहिक आदि भी अब हिंदी के चलते-फिरते जीवित शब्दों के स्थान पर जमकर अंग्रेजी के शब्दों को स्थापित कर रहे हैं।यही नहीं अब तो अनेक समाचार पत्र, पत्रिकाएं और चैनल आदि भी देवनागरी लिपिके स्थान पर रोमन लिपि का प्रयोग भी करने लगे हैं। स्कूलों से हिंदी के विद्यार्थी तेजी से घटते जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश जैसे हिंदी का केंद्र माने जाने वाले राज्य में भी हिंदी में फेल होने वाले विद्यार्थियों की संख्या बहुत बड़ी है। विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों की कमी के चलते हिंदी विभाग बंद हो रहे हैं या विद्यार्थी जुटाने का दायित्व भी प्राध्यापकों के सिर आ पड़ा है। विदेशों में भी अनेक विश्वविद्यालयों में अब हिंदी विभाग बंद किए जा रहे हैं।

हिंदी साहित्य के नाम पर अब अधिकांश विधाएँ लुप्त होती जा रही हैं

(Hindi diwas 2021)

 अगर मोटे तौर पर देखें तो हिंदी साहित्य के नाम पर अधिकांशतः कविता। कविता के नाम पर अधिकांशतः  हास्य कविता और हास्य कविता के नाम पर अधिकांशतः सोशल मीडिया पर चलने वाले चुटकुले और हास-परिहास। हिंदी की अनेक प्रतिष्ठित पत्रिकाएँ बंद हो चुकी हैं या बंद होने के कगार पर हैं। अंग्रेजी माध्यम के चलते हिंदी समाचार पत्रों की दशा भी कोई बहुत अच्छी नहीं है। हिंदी भाषियों के घरों से हिंदी समाचार पत्र और पत्रिकाएँ लुप्त होते जा रही हैं। हर तरफ चल रहा है *हिंदी का खेल और हर मोर्चे पर हिंदी हो रही है फेल।*

 इस संबंध में कुछ बिंदुओं पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।

  1. भारत के संविधान के अनुच्छेद 343 में हिंदी को संघ की राजभाषा का स्थान दिए जाने के बावजूद क्या संविधान, अधिनियम,नियम आदि की दृष्टि से अंग्रेजी के पास भारत की राजभाषा यानी अधिकृत भाषा के रूप में हिंदी से कम अधिकार है या अधिक?
  2. वह कौनसी भाषा है जो संघ में भी मान्य है और सभी राज्यों में भी ?
  3. वे कौन-कौन से अधिकार हैं जो हिंदी के पास तो हैं लेकिन अंग्रेजी के पास नहीं?
  4. उच्च शिक्षा, रोजगार और संपन्नता से जुड़े सभी संसाधनों की ढलान अंग्रेजी की तरफ है या हिंदी भाषा की तरफ ?
  5. देश के विभिन्न कानूनों के अंतर्गत  कौन-कौन से कार्य हैं जो केवल हिंदी में ही किए जा सकते हैं ?
  6. भारत की वह कौन सी भाषा है जो संघ सरकार और राज्य सरकारें कंपनियों, संगठनों वअन्य संस्थाओं आदि द्वारा पूरे देश की जनता के साथ पत्राचार सहित सभी उद्देश्यों के लिए अधिकृत पत्राचार के लिए प्रयोग में लाए जाने के लिए अधिकृत है ?
  7. वह कौन सी भाषा है जिसके माध्यम से न्यायपालिका के निचले स्तर से लेकर उच्चतम स्तर तक न्याय प्राप्त किया जा सकता है ?
  8. क्या संघ की राजभाषा अथवा राज्यों में राज्यों की राजभाषा के माध्यम से न्यायपालिका के निचले स्तर से लेकर उच्च उच्चतम स्तर तक न्याय प्राप्त किया जा सकता है ?
  9. आपके घर में प्रतिदिन जो सामान आता है उसमें ग्राहक कानूनों के अंतर्गत जो जानकारी दी जाती है, वह प्रायः किस भाषा में होती है, क्या वह हमारी भाषामें देना आवश्यक है? क्या किसीको दिखता नहीं कि कानूनन हमें दी जानेवाली जानकारी भी हमें हमारी भाषाओं में नहीं मिलती ?
  10. आपका सरकारी और निजी क्षेत्र के बैंकों और बीमा कंपनियों आदि में जाना होता ही होगा ? वहाँ कौन सी ऐसी भाषा है जो आपको हर जगह मिलेगी? और कौन सी वह भाषाहै जो कहीं मिलेगी, कहीं नहीं मिलेगी या ढूंढने और माँगने पर मिलेगी ?
  11. कितने लोगों को आज तक अपनी पासबुक हिंदी या किसी अन्य भारतीय भाषाओं में मिली है?
  12. हिंदी भाषी क्षेत्रों में भी हिंदी माध्यम के और अन्य राज्यों में मातृभाषा के कितने प्रतिशत स्कूल खुले हैं? देश मेंजितने भी हिंदी या भारतीय भाषा प्रेमी है वे वर्तमान परिस्थितियों को देखकर कितने लोग अपने बच्चों या नाती पोतों को हिंदी अथवा किसी भारतीय भाषा माध्यम में पढ़ाने की सोच पाते हैं?

*किसी को मिला ताज, किसी को मिला राज।*

मैंने तो केवल कुछ बिंदुओं की तरफ ही ध्यान आकर्षित किया है। ऐसे अनेक बिंदु गिनवाए जा सकते हैं। लेकिन अब आप पलट कर देखिए कि हिंदी को लेकर प्रतिवर्ष होने वाली हजारों वार्ताओं,सम्मेलनों, संगोष्ठियों, बैठकों,  संवादों आदि से क्या उसकी स्थिति में कोई परिवर्तन आ रहा है? संविधान लागू होने से अबतक जो परिवर्तन आया है या आ रहा है, वह हिंदी के पक्ष में जा रहा है या अंग्रेजी  के पक्ष में जा रहा है?

जितने कथित प्रयास अब तक किए गए हैं, इससे तो अब तक देश में हिंदी का समुद्र भर गया होता‌।कहीं कोई दूसरी भाषा दिखती ही नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारे प्रयास कुछ ऐसे हैं जैसे कि हम छलनी में पानी भर रहे हों। देश में हिंदी के नाम पर जो कानूनी ढांचा है उसमें इतने छेद हैं कि आप पानी भरते जाइए, लगे रहिए और थोड़ी देर बाद छलनी जैसी थी, वैसी ही खाली की खाली।

यदि आपके घर के बाहर सड़क बनवाई गई, उसका ढलान इंजीनियर ने मिस्त्री से उधर नहीं करवाया जहाँ सब चाहते थे, समझा दिया सब ठीक हो जाएगा। तो क्या होगा? आप कितना भी परिश्रम करें, पानी को दूसरी तरफ ले जाएं, पानी पलक झपकते ही वापस उधर की तरफ जाने लगेगा जिस तरफ ढलान है।

कहीं ऐसा तो नहीं कि संसाधनों की ढलान हिंदी अथवा भारतीय भाषाओं के पक्ष में नहीं बल्कि अंग्रेजी की तरफ ही बनी या बनाई गई। शायद इंजीनियर या ठेकेदार  ने अनजाने में नहीं जानबूझ कर ऐसा किया। अब पानी भरते ही आप लग जाते हैं उसे निकालने में। अगले दिन फिर वही हालत, वही कवायद। आप भी थक चुके हैं। अगर उस ढलान को ठीक नहीं करेंगे तो हम कितने भी प्रयास कर लें, प्रतिदिन लाखों संगोष्ठियाँ कर लें, लाखों लोगों को समझा लें। अंततः तो पानी ढलान की तरफ ही जाएगा। जहाँ उच्च शिक्षा, रोजगार, संपन्नता, सुविधा और न्याय आदि की सब व्यवस्थाएँ होंगी, सामाजिक प्रतिष्ठा मिलेगी। चाहे – अनचाहे सबको वही जाना पड़ेगा, सब वही जा रहे हैं। हो सकता है कुछ लोग कुछ अपवाद बता दें, लेकिन अपवादों से तो सिद्धांत नहीं बदलते दया शंकर जी को
निम्लिखित पुरस्कार मिले है    

 1- राष्ट्रपति पुरस्कार

2- सरस्वती सम्मान, भारत विकास परिषद 

3- महापदम नंद  सम्मान, एम.सी.ई.ए इलाहाबाद  

4- महान गणितज्ञ  श्रीनिवास रामानुजन सम्मान शिव समाज सेवा उत्थान समिति द्वारा ।

5-अरविंदो सोसायटी नई दिल्ली द्वारा टीचर इनोवेशन अवार्ड प्रदान किया गया एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित।

सम्प्रति-शिक्षक, प्रशिक्षक,संवाददाता राष्ट्रीय न्यू चैनल।

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