Hindi kavita jeevan ke rang-जीवन के रंग/सीताराम चौहान पथिक

 Hindi kavita jeevan ke rang

       जीवन  के  रंग  


नील- गगन में उड़ा जा रहा था हंसो का जोड़ा , 

आखेटक था खड़ा ताक में , बाण वहीं से छोड़ा , 

आहत होकर गिरी हंसिनी — पीड़ा  से  अकुलाई  , 

आखेटक  अट्टहास  कर उठा था  अति  क्रूर  निगोड़ा । 

 

करुणामयी दृष्टि बस  डाली , — हंसिनी  ने  प्रियतम पर , 

और मुंद  गये नयन – वियोगी बना हंस  जीवन – भर , 

अब उड़ना सब छूट गया था , – विरह – दंश असह॒य था , 

मोती नयनों से झरते थे , निराहार  बस दिन भर । 

 

अति  कॄस –  काय हंस  को , 

साथी  भी  पहचान  ना पाते , 

जीवन – दर्शन की सब  बातें , 

उसे  सुना  समझाते , 

हंस सरोवर में सहचरि की , — स्मृतियों  में  खोया रहता , 

करते सभी किलोले , उसको यह  सब  तनिक ना  भाते । 

 

एक दिवस मोहिनी हंसिनी  — आकर  उससे  बोली , 

यह कैसी दुर्दशा  बना  ली –सोचो  तो  हमजोली , 

किसी एक के लिए त्यागना , 

जीवन  उचित  नहीं है , 

नये सिरे से  आओ  सजा लें , 

— हम  जीवन  की  डोली  । 

 

अनुभव हुआ हंस को  जैसे – मोहिनी – रूप  वह  आई , 

जीवन की  सूखी बगिया में – नव – वसन्त ऋतु  लाई  । 

एकाकीपन  मिटा  — हंस ने दिया  मौन  आमंत्रण , 

मोहिनी ने आगे बढ़ कर , फिर अपनी  चोंच  मिलाई ।। 

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सीताराम चौहान पथिक

 

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