hindi kavita prem ka path-प्रेम का पथ/संपूर्णानंद मिश्र

 

hindi kavita prem ka path

 

प्रेम का पथ 

प्रेम है पथ
समर्पणका

प्रेम है पथ
अर्पण का

प्रेम है पथ
त्याग का

प्रेम ही पथ
जीवन का

प्रेम सृष्टि का
भाग है

प्रेम है पथ  रस
का है

प्रेम बिना सब
विरस है

प्रेममीरा कबीर
की बानी है

प्रेम सूर तुलसी
की कहानी है

प्रेम के सागर
में

रसखान ने गोता
लगाया

औरश्याम
रूपी मोतीपाया

प्रेम ही जीवन
का सार है

प्रेमही अभिसार
है

प्रेम साधनाहै

प्रेम ईश्वर की
आराधनाहै

प्रेम जीवन का
रंग है

प्रेम जीवन का
ढंग है

प्रेम है तो

पूरी कायनात
संग है

प्रेम हनीमून है

प्रेमनहीं तो

हनी
है

मून
है

अपने जीवन
में

प्रेम के ढाई
आखर

जिसने उतार लिया

उसने इस
संसार से

पार पा
लिया

2. अब नहीं
चला जा रहा
है!

 

जिस पड़ाव पर हूं

जिस हाल में हूं

    जिस अवस्था की छत पर

       मैं खड़ा होकर देख रहा हूं

      यहां से बाहर की दुनिया

     देखने पर झांई आती है

अतीत के संबंधों की

 मधुर स्मृतियों की बाहें पकड़कर  

यहां तक तो चला आया

लेकिन अब लड़खड़ा रहा हूं

    टूटे मन से थके तन से

     पांव को‌ ढोए जा रहा हूं!

    अब नहीं चला जा रहा है

     लगा रहता है डर कि

 मधुर– स्मृतियों की बांहें

 मुझे    मझधार में ही  छोड़ दें

  वर्तमान ज़िन्दगी के

      पथ की मेरी नैया

  आत्मीय संबंधों की

   गंगा में डूब रही है

  किससे बचाने की गुहार लगाऊं

    किसे मैं पुकारूं !

     संसार के बाजार की

       स्वार्थ– गंगा में

     हर आदमी डूबा हुआ है

      उस घाट कैसे मैं जाऊं

       अब नहीं चला जा रहा है

 ‌‌     किसे मैं पुकारूं !

      यहां तो सबको

   अपने पैरहन की पड़ी है


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3. गर्दन बकरे की

 

खेत-खलिहानों को छोड़कर

अपने घर से बहुत दूर 

सर्द हवाओं को पीते हुए

चेहरे पर कुदरत की असंख्य

खींची हुई अमिट 

रेखाओं की लकीर 

मिटाने के लिए 

निकल पड़े हैं 

पुनः शहर की ओर 

कुछ  मजदूर

नहीं डर है अब 

हांलांकि वे जानते हैं

 जीवन और मृत्यु में उनके 

बस कसाई के गड़ासे

और बकरे की गर्दन

 की ही दूरी है

 

 

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