hindi poem granthi/डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र

ग्रंथि

(hindi poem granthi)


बहुत छोटा शब्द है
लेकिन प्रभाव मारक होता है
भर लेती है विष, ग्रंथि
अपने भीतर
और जिस घर में बैठ जाती है
खोखला कर देती है उसे
संज्ञा शून्य हो जाता है व्यक्ति
बंद हो जाता है उसके शरीर में
बुद्धि और विवेक का रक्त संचार
नहीं निकल पाता है
इस भव- रोग से
भीतर ही भीतर न जाने

कितनी शंकाओं का

मकड़जाल बना लेता है

अपने मस्तिष्क में वह

सच और झूठ का अंतर
नहीं दिखाई देता है उसे
नतीजतन हंसती- मुस्कुराती

ज़िंदगी की मज़बूत इमारत को

अपने संदेह और अविश्वास के

बुल्डोजर से ढहा देता है

hindi- poem- granthi
डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर
7458994874


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