प्रतिस्पर्धा | Hindi Tragedy Poem- नहीं है अमर

प्रतिस्पर्धा | Hindi Tragedy Poem- नहीं है अमर

१.नहीं है अमर


बचपन और बुढ़ापा
जन्म और मृत्यु
वसंत और पतझड़
शाश्वत सत्य हैं
नहीं है अमर यहां कोई
तेज हो जाती है लौ
बुझते दीपक की
बुझ जायेगी
महामारी की लौ भी
निकाल देना चाहिए
भय भी इसीलिए
क्योंकि जन्म लेता है
अवसाद भय के गर्भ से
तन की शाद्वलता को
निराशा का प्रखर सूरज
जला देता है
गवाह रहा है इतिहास भी
तैर रही थीं लाशें
ब्रिटिश काल में
समस्त भारत – नदियों में
लेकिन कुचल दिया
हमारी आशाओं के अनीक ने
उस महामारी को
फिर से दिन बहुरेंगे
बस दो गज दूरी
और मास्क है ज़रूरी
का करते रहें पालन अनुदिन


२.  प्रतिस्पर्धा

अपनी कोख से
जनती है
स्वस्थ प्रतिस्पर्धा
एक सार्थक विचार
जो
पीकर कल्पना के खाद
अंखुआता है
एवं सोखता है
मिट्टी,जल,और धूप
और लेने लगता है
एक आकार
सत्य के महावट का
नहीं हो सकता है
कभी भी ठूंठ वह
क्योंकि
नहीं आचमन किया है
मत्सर एवं अहंकार के
जल का
ओढ़ता है जीवन
में जो व्यक्ति डाह की चादर
नहीं रह सकता
अपने सकूनत में
सकून से कभी वह


hindi-tragedy-poem
सम्पूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर
7458994874

आपको प्रतिस्पर्धा | Hindi Tragedy Poem- नहीं है अमर  / सम्पूर्णानंद मिश्र   की  हिंदी  कविता  कैसी  लगी  अपने  सुझाव  कमेंट  बॉक्स  में अवश्य  बतायें। 

अन्य  रचना  पढ़े :

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *