Holi poems in hindi- होली पर गीत और छंद

Holi poems in hindi- होली पर गीत और छंद 

१. होली 

रंगों का यह पर्व हमारा,सब को मंगलमय हो।
बूढ़े-बच्चे-नवजवान का,रस से भरा हृदय हो।।

प्रथम गुलाबी रंग घोलकर,पिचकारी में भर लें।
आँख बचाकर हुरियारो के,उर के मध्य उतर लें।।
फिर मनमानी नाच भिगोएं,थक-थक सब को कर दें।
होली है जी हो ली है,यह रव सब में भर दें।
बुरा न मानो होली है जी,सबसे यही विनय हो।
रंगों का यह पर्व हमारा,सबको मंगलमय हो।।

गया पुराना वर्ष बीत अब,होली हुई दहन है।
ऋतु बसंत का हुआ आगमन,पुलकित हुआ चमन है।।
स्वर्णिम हैं परिधान खेत के,गदराए तन-मन हैं।
नीम फूलती महुआ फूले,मिष्टी सब का धन है।।
नए-पुराने दोनों में ही,कोपल नव किसलय हो।
रंगों का यह पर्व हमारा,सब को मंगलमय हो।।

लाल-हरे-बैगनी-वसंती,टीका पावन धर दें।
नव-नव पल्लव भारत पाए,बावन हमको वर दें।।
मिला हमें जो प्रेम धरोहर,ले गुलाल नव रच दें।
वेदों का मूलाशय है जो,दुनिया भर को सच दें।
भेदभाव होली में डालें,स्वाहा विषम विषय हो।
रंगों का यह पर्व हमारा,सब को मंगलमय हो।।

 

२. स्वतंत्र विषय

गीत स्वतंत्र विषय है भाई।
तजो न लेकिन निज करुणाई।

बुरा न मानो की है बोली।
कहती हुरियारो की टोली।।
आओ हम त्योहार मनाएँ।
सबको अपने गले लगाएँ।।
रंगों की ताने पिचकारी।
सभी भिगोएँ बारी-बारी।।
होली आई होली आई।
गीत स्वतंत्र विषय है भाई।।

बुरी आदतों पर दें ताला।
निज उर की खोलें मधुशाला।।
एक मंच पर सब हो जाएँ।
नेक मार्ग पर चलें चलाएँ।।
पाँव नहीं डगमग हो पाए।
सुगम राष्ट्र का पथ हो जाए।।
निखरी धूप करें पहुनाई।
गीत स्वतंत्र विषय है भाई।।

प्राण हवन से ये दिन आए।
वीर जाग कर हमें जगाए।।
देखो ये प्रह्लाद खड़ा है।
अपने प्रण को टेक अड़ा है।।
नही मार्ग से विचलित होना।
कष्टों से मत धीरज खोना।।
अंत मिले निश्चय मृदुताई।
गीत स्वतंत्र विषय है भाई।।

सब के रंग-गुलाल लगाओ।
लेकर तनिक उछाल लगाओ।।
तनिक-तनिक झुकना भी सीखो।
रंग भारती में रँग दीखो।
जात-पात के भेद मिटाओ।
सब को अपने सँग ले धाओ।।
भारत की हट जाए काई।
गीत स्वतंत्र विषय है भाई।।

होली तो बस वीरों की है।
सीमा के रण धीरों की है।।
नहीं आलसी वृद्धों की है।
नहीं लालची-गृद्धों की है।।
अपने तरकस तीर सँभालो।
रक्त बीज निज खप्पर पा लो।।
नील कंठ बन जग विषपाई।
गीत स्वतंत्र विषय है भाई।।

 

३. होली में मत भाग सखी

होली में मत भाग सखी।
जागे नहीं विराग सखी।।
माधव से रँग खेल सखी।
दृग के तान गुलेल सखी।।

मोहन को भर आँख रहो।
जीवन हो अति धन्य अहो।।
श्यामल  रंग मनोहर है।
उर पुर सुखद धरोहर है।।

होली-होली बोल सखी।
अपना दे उर खोल सखी।।
धन्य बाँसुरी बाँस सखी।
खेले हरि के श्वाँस सखी।।

जग का रंजन त्याग सखी।
केवल हरि अनुराग सखी।।
रँग रसिया धर हाथ सखी।
हो ले आज सनाथ सखी।।

घोल हृदय के रंग सखी।
जीत आज ले जंग सखी।।
मग अपना मत भूल सखी।
गड़े हृदय में शूल सखी।।

पर पुर की यह गली सखी।
लगे न मुझको भली सखी।।
साथ रहें जब श्याम सखी।
मिले तभी आराम सखी।।

श्याम लिए पिचकारी हैं।
जिससे हम सब हारी हैं।।
उनको भर अँकवार सखी।
अपने उर में धार सखी।।

तू अपने रँग बोर सखी।
मानूँ सदा निहोर सखी।।
उर में ले कर कैद सखी।
पीर हरें ये वैद सखी।।

होली के दिन चार सखी।
इन पर ही तू वार सखी।।
यशुदा के ये लाल सखी।
जीवन करें निहाल सखी।।


Holi -poems- in -hindi
बाबा कल्पनेश

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