insaan ek bulabula इन्सान –एक बुलबुला/ सीताराम चौहान पथिक
insaan ek bulabula इन्सान -एक बुलबुला / सीताराम चौहान पथिक
इन्सान —एक बुलबुला
इन्सान – क्या है ?
पानी का एक बुलबुला ।
घमंड इतना भरा ,
जैसे खुद हो खुदा ।
वक्त से डर , हे इन्सान
वक्त है – शहंशाह ।
इसने ना जाने कितने सिकंदर
फनाह किए , जिनका ना कोई निशान ।
इन्सान , खुद को पहचान
कठपुतली है तू ,
है डोर से बंधा ।
तेरी हर हरक़त पे है उसकी नज़र ,
नीचे ना तू ऊपर ,
है बीच में टंगा ।।
जवानी के नशे में ,
अंधा ना बन पागल ।
कल बुढ़ापा भी आएगा ,
नशा काफूर हो जाएगा ।
घड़ी में वक्त है तेरा भी लिखा
नशे में तुझको नहीं दिखा ।
भुला दे नादानियां अपनी
इसी में है तेरा भला ।।
फैसला तुझको करना है अब ,
मालिक का दर है खुला ।
आंसुओ से रंग दे चौखट उसकी ,
क्योंकि पथिक , तू है एक
मात्र पानी का है बुलबुला ।।
सीताराम चौहान पथिक
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