itihaas likhata raha/इतिहास लिखता रहा- डॉ. सम्पूर्णान्द मिश्र

itihaas likhata raha:  डॉ  सम्पूर्णान्द मिश्र की  रचना  इतिहास लिखता रहा  हिंदीरचनाकर  पाठको के  सामने प्रस्तुत है  

इतिहास लिखता रहा

कुछ समय निकाल कर

     हंस लूंगा

  चाहे जितनी

 पाबंदियां लगा दो

 मुसीबतों का पहाड़

  ही रास्ते में बिछा दो

  केवल मुट्ठी भर

  एकांत मुझे चाहिए !

    मैं हंस लूंगा

  मेरे सुख में सदा

  तुम ज़हर घोलते रहे हो

         और

          मुझे

हतोत्साहित करने के लिए

तेज़ाबी बोल बोलते रहे

 सुखद मेरे लिए यह रहा कि

मेरी ज़िन्दगी के मुंडेर पर बैठकर

कौआ कांव-कांव बोलता रहा

मुझे सुखद आश्चर्यजनक

   संदेश देता रहा

   क्या फ़र्क पड़ा !

मुझे नीचा लज्जित दिखाने की

 हर रंगीन ख्व़ाहिशों का

स्वप्न भी  तुम्हारा टूट गया

भूने हुए पापड़ की तरह ।

   क्या हुआ

मैं निरंतर हंसता रहा !

पाबदियां टूटती रही।

हंसी को उदासी में

परिणत करने के लिए

मेरे ज़िदगी के मुखमंडल पर

चिंताओं की लकीरें

भी खींच कर देख ली तुमने

    क्या हुआ!

मैं वहां भी हंसता रहा

तुम्हारी लकीरें मिटती रही

        और मैं

अपनी ज़िंदगी में हंसी का

एक नया इतिहास लिखता रहा !

 

itihaas- likhata -raha
डॉ. सम्पूर्णान्द मिश्र

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