जवाब ढूंढती महिला / रत्ना सिंह

जवाब ढूंढती महिला / रत्ना सिंह

कभी- कभी ऐसी घटनाएं सामने उभर कर आ जाती हैं कि समझ में ही नहीं आता कि भला इनको बाहर कैसे उगलू ?और यदि नहीं उगली गयी तो‌ ये अन्दर ही अन्दर और खोखला कर देंगी । कलम लेकर कर बैठी कि चलो लिख ही डालती हूं कलम भी लड़खड़ाने लगी उसकी नकेल को कसकर पकड़ा हुआ था फिर भी जम नहीं पायी। थोड़ी देर कागज कलम से जूझती रही लेकिन कुछ ——।

सोचा कि फोन पर अपनी करीबी दोस्त रिया से बात को कहकर थोड़ी देर के लिए सिर हल्का कर लूंगी। रिया के फ़ोन उठाते ही ये जुबान भी लड़खड़ाने लगी धत् -तेरी की ये हो क्या रहा है। अभी कल ही सुमन ने बताया तब मैंने ही उसे सब ठीक होने की सांत्वना दी और आज मैं ही लड़खड़ा रही हूं। नहीं मैं —— ।उससे दुबारा बात करुंगी तो उसको क्या जवाब दूंगी—। यही सब सोचते-सोचते मैंने उसकी बतायी बातों को लिखने बैठी – क्या बताऊं यार पेट से हूं पांच महीने हो गए हैं और पति रोज -रोज कहते हैं कि ये बच्चा उनका नहीं है।

कितना भी कह लो नहीं मानते ? मैंने यहां तक भी कह दिया कि डी एन ए चेक करवा लो तभी भरोसा नहीं किया । पन्द्रह दिन के अन्दर घर से निकल जाने को कहा है बता क्या करूं। सुमन की ये बात सुनकर पहले तो मैं भी शून्य हो गयी , थोड़ी देर के बाद –चिंता मत करो कहीं मत जाना। ज्यादा समस्या हो तो बताना आकर ले जाऊंगी। ठीक है यार कह फोन कट गया। अभी कलम रखी ही नहीं कि फ़ोन की घंटी बज उठी ।अरे!ये तो सुमन का फोन -हां सुमन बोल सब ठीक तो है। उधर से सुमन की आवाज-” नहीं दी कुछ ठीक नहीं है हम दोनों—–। क्या हम दोनों ? मैंने पूछा! आपके पति एक महिला के साथ अस्पताल आये थे उस समय वहां पर —-। वो मुझे नहीं देख पाये बिलिंग काउंटर पर उस महिला को अपनी पत्नी और बच्चे के इलाज की बात कही दी—। सुमन ने कहा—अभी सुमन बोल ही रही थी कि फोन काट दिया कुछ याद नहीं मैं तो बस जमी पड़ी हूं न जाने कब ——–?

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