जीवन ही प्रेम | मन से मन का मान रख | कैसे खेली हम आज कजरिया | सावन की घटा
1 .जीवन ही प्रेम है।
मुहब्बत हर कण,
हर क्षण में होता है,
कोई खोकर पाता,
कोई पाकर खोता है।
पशु-पक्षी पेड़-पौधे,
सबमें प्रकृति-प्रेम है,
नजर तो जरा घुमाओ,
सूक्ष्मता में भी स्नेह पाओ।
सावन का प्रेमी है मेघ,
मेघ को बूँदों से प्रेम अगाध।
बूँदों को धरा से अधिक लगाव,
धरा को प्यार है आसमान से।
औरत को प्रेम है श्रृंगार से,
श्रृंगार से मुहब्बत है नर को।
देखोगे तो आँखों को,
काजल लजायेगा,
देखोगे चूडी को,
कलाई खनक जायेगी।
देखोगे अधर को,
लाली मुस्कुरायेगी।
देखोगे श्रृंगार को,
नारी शरमाएगी।
यह सब प्रेम है,
प्रेम सुन्दर है,
सुन्दरता सुकून है
सुकून ही जीवन है
जीवन ही प्रेम है….।
(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई
2. मन से मन का मान रख
सुधियों का पट खोलिए ,
मैं याद बॉह भर डोलिए।
नहीं कर नयन अश्रुधार,
नेह-अंजन भर बोलिए ।
कोयल पपीहा मोर नाचै
दिवस रजनी प्रेमिल बॉचै
झूम रही मदमस्त पुरवाई
काले मेघ बरखा को जांचै ।
विरहिन की घुट-घुट रूदन ,
बना शरीर पानी मन चंदन।
अनमनी बन काज कर रही,
प्रातः करूॅ हरि नित नेम वंदन ।
करो मौन को दरकिनार ,
करों भावों से भाव इजहार ।
अंकित कर अपना निशान,
सावन सा वन बन झेलिए ।
क्षणभंगुर सा भान रख,
मन से मन का मान रख।
अनमोल उपहार है जीवन -,
मीठा श्रुतिपूट रस घोलिए ।
(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई
कजरी
3.कैसे खेली हम आज कजरिया।
सखी हो, घिरि-घिरि आये बदरिया
कैसे खेली हम आज कजरिया-2
कान्हा नाचें ता-ता थईया,
कौन है मोरी नाव खेवईया,
श्याम रमे हैं रूक्मणि संग में,
पास नहीं हैं मेरो सईयॉ।
राधा रानी सज धज बानी
खाये मिश्री मेवईया
सखी हो मन कॅ कौन खेवईया
कैसे खेली हम आज कजरिया-2
सखी हो……..।।1।
मनवांछित फल खातिर
शिव के पूजत बानी,
भरा-पूरा संसार रहे ,
अर्ध्य देत बानी।
बम-बम बोले नारा से
धरती हिलरत धानी,
सखी हो, कौनो न होइहै सेवईया।
कैसे खेली हम आज कजरिया
सखि हो……..।।2।
रोपि रहे धान सब,
झूमि-गायें कजरी
जल्दि आवा मोरे सजन
बाया कौने डगरी
सोलहों श्रृंगार कइके
ढूँढत हई हम नगरी
सखी हो कब ले अइहैं जेवइया
कैसे खेली हम आज कजरिया-2
सखी हो……..।।3।
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई
सजल
4.सावन की घटा।
सोंधी महक और महकदार हो जाएगी
सावन की घटा घनघोर प्रीति बरसाएगी ।।1।
प्रीत मनमीत को सुन्दर गीत सुनाकर
नीलाम्बर की बूॅदों से धरा प्यास बुझाएगी ।।2।
बूंद-बूंद मोती सी चमकती पत्तों पेड़ों पर,
झुरमुट की ओट से झाड़ी खुद रिझाएगी ।।3।
प्रकृति-प्रेम की अगाधता सम्मोहित करती
वाष्प जल फूलो पर ओस की परत बिछाएगी ।।4।
सरिता वन विहार करती कल-कल निश्छल,
नदी प्यासे समन्दर केअंक में समाएगी ।।5।
माह सावन सा वन रहे सदा हरा- भरा,
जेठ की आग से जंगल को भला कौन बचाएगी।।6।
सुख सुबह तो दुख सुहानी सांझ है मित्रों,
रजनी पहर चांद ही प्रेम प्रकाश को जलाएगी।।7।
प्रेम तंग करता प्रेम रंग भरता प्रेमी बनता साहित्यकार,
प्रेमिल जोड़े को प्रेम, प्रेम सत्य को दिखाएगी ।।8।
क्षणभंगुर जीवन है, तो क्या जीवंत रहा करो,
सदाचार करते रहो, हिया लोकप्रिय बन जाएगी ।।9।
मिट्ठी शरीर पर श्रृंगार से सजाकर रखती ,
क्या पता कब ये प्राण पखेरू उड़ जाएगी ।।10।
(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई