Jung Aur Aman – जंग और अमन / सीताराम चौहान पथिक
Jung Aur Aman – जंग और अमन / सीताराम चौहान पथिक
जंग और अमन
ज़िन्दगी सरगम है इक – – – ,
रागों में गाता जा रहा हूं ।
तार जब तक तने हैं – – ,
सब को सुनाता जा रहा हूं ।।
तार ढीले पड़ ना जाएं ,
कस रहा हूं ज़िन्दगी को ।
मुझमें भरी है आग ,
अपनी क़लम को गरमा रहा हूं ।।
सोए हुए हैं दुनिया वाले ,
ऐटम बमों के ढेर पर ।
अमन कायम हो सके ,
नगमे सुनाता जा रहा हूं ।।
जाग जाओ दुनिया वालों ,
संगठन में शक्ति है ।
कुछ सर – फिरे लोगों को ,
बस , आईना दिखाता जा रहा हूं ।।
जियो और जीने दो भाई ,
फूलों से कुछ तो सीख लो ।
बात यह ग़ज़लों में कब से ,
मैं बताता जा रहा हूं ।।
वक्त है दुनिया के लोगो ,
जंग -ए- ऐटम से बचो ।
कुछ नहीं बच पाएगा ,
शैतान को समझा रहा हूं ।।
तार मेरी सरगमो के ,
ढीले ना पड़ जाएं कहीं ।
ऐहसास शायरों को पथिक ,
इस कलम से करवा रहा हूं ।।
सीताराम चौहान पथिक
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