kisan aandolan par kavita- किसान आंदोलन पर कविता

kisan aandolan par kavita 

 कृषक आन्दोलन का इतिहास बहुत पुराना है और विश्व के सभी भागों में अलग-अलग समय पर किसानों ने कृषि नीति में परिवर्तन करने के लिये आन्दोलन किये हैं ताकि उनकी दशा सुधर सके।मोजुदा दौर में भारत में कृषक आंदोलन तेज गति से बढ़ रहे है इसका मुख्य कारण कृषक की आर्थिक हालत दिन प्रति दिन कमजोर हो रही है और वो कर्ज के मकड़ जाल में फंस रहा क्यों की मौजूद दौर में कृषि में लागत बढ़ रही है आमदनी घट रही है जिस कारण से किसानो में आत्म हत्या की घटनाए बढ़ रही है ।दूसरी तरफ लोग कृषि निति बदलवाने के लिए संघर्ष कर रहे है ।बर्ष 2017 में देश में छोटे बड़े सैकड़ो आंदोलन देश में हुए है सरकार को कृषि के सम्बन्ध में बोलने पर मजबूर किया है जिस में महारास्ट्र का जून 17 मेंगाँव बन्द हो चाहे नासिक से मुम्बई तक का मार्च हो राजस्थान में पानी व् बिजली के सवालो पर आंदोलन हरियाणा में 2015 में नरमें की फसल के खराबे पर मुअब्जे की मांग का आंदोलन हो तमिलनाडु के किसानो का महीनो तक संसद मार्ग पर धरना आदि मुख्यत रहे है । 

 किसान आंदोलन पर कविता 


भटकती जनता की ओर नजरें डालकर तो देखो,

पूरी दुनिया को भोजन खिलाकर,

अपने परिवार को भूखा रखकर तो देखो,

  बदहाल किसान की हालत तो देखो,

संसद में बैठे रहनुमाओं को तो देखों,

भटकता है किसान दर-ब-दर सड़कों पर,

लिए गठरी मेहनत की,

कौन बोले इन अफसरों से,

तुम्हारी रहनुमाई चलती इन किसानों से।

  मैं नहीं मांगता खैरात में किसी से कुछ,

एक बार मेरी मेहनत का सही मूल्य दिलाकर तो देखो,

सोने की चिड़िया फिर से बन जाएगा भारत,

एक बार किसानों को उनका हक दिलाकर तो देखो।

 

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दयाशंकर साहित्यकार

 

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