मॉ गीत विरद तव गाऊॅ | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश

मॉ गीत विरद तव गाऊॅ | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश

पदरज आज सजा मेरे माथे,
मॉ गीत विरद तव गाऊॅ,
ऋषि-मुनियों ने ध्यान लगाया,
मॉ मैं भी तुझको ध्याऊॅ।टेक।

कृपा मिले तो भव सागर से,
पार मेरी नौका हो जाये,
अक्षर-अक्षर गीत सुमंगल,
पढ़ने का मौका मिल जाये।
मंत्रमुग्ध श्रोता हो जायें-,
मॉ जी भर गीत सुनाऊँ।
पदरज आज सजा मेरे माथे,
मॉ गीत विरद तव गाऊॅ।1।

कहने को जग अपना सारा,
नहीं किसी का मिला सहारा,
पल-छिन भार व्यथा का बढ़ता-,
स्नेह-सिन्धु का दूर किनारा।
आ ही गया अब शरण में मुझको,
निज ऑचल दो हरषाऊॅ।
पदरज आज सजा मेरे माथे,
मॉ गीत विरद तव गाऊॅ।2।

रचना मौलिक,अप्रकाशित,स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित है।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश’,
रायबरेली (उप्र) 229010
9415955693

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