मन के जगमग दीप जलाएं / डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश
मन के जगमग दीप जलाएं / डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश
राग द्वेष का जहां तिमिर है साथ साथ मिल दूर भगाएं
मिल कर आपस में हम अपने मन के जगमग दीप जलाएं।।
अपने बिछड़े बहुत दिनों से
दूर गए बिंध कर शूलों से क्षमादान दें, क्षमादान लें
हर एक को हम गले लगाएं।।
मन के जगमग दीप जलाएं।।
देहरी पर दीपावली आई कुछ संदेशा देने आई
प्रीति स्नेह की पूंजी बाटें,
पाटें बीच पड़ी जो खाई
करें सफाई अंतस्तल की अपनापन को भूल न जाएं ।।
मन के जगमग दीप जलाएं।।
इस धरती पर सभी हैं अपने
तन को नहीं साध लें मन को सुख समृद्धि की ढेरी में ही
लिप्त न कर दें हम जीवन को
युग युग से उलझी उलझन में
सूत्र एकता के सुलझाएं।।
मन के जगमग दीप जलाएं।।
करें प्रार्थना गणपति जी से लक्ष्मी मां को माथ झुकाएँ
करें कृपा मुझ दीन हीन पर
दुख दरिद्रता पास न आए
हवाला रहे मन, मानवता को
खोलें उर कपाट अपनाएं।।
मन के जगमग दीप जलाएं।।
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