मज्जन फल पेखहिं तत्काला | सम्पूर्णानंद मिश्र
मज्जन फल पेखहिं तत्काला
निःसंदेह शरीर भीगता है
मज्जित होने से
लेकिन
आत्मा नहीं
आत्मा तो भीग सकती है
सिर्फ और सिर्फ
विचारों की पवित्रता के जल से
नकारात्मकता की चादर की कुज्झटिकाओं से
जब तक सकारात्मक
विचारों के आकाश
छाए रहेंगे
तब तक
मन और शरीर
दक्षिणायण के पथ पर
भटकते रहेंगे
मकर संक्रांति को
भी मन -मयूर ने
यदि
उत्तरायण में नृत्य नहीं किया
तो निश्चित रूप से
मनुष्य का पतन
निश्चित है
और मन रूपी सूर्य का
आत्मा रूपी मकर में प्रवेश असंभव है
आज जागृत होने
का समय है
सिर्फ और सिर्फ
शरीर भिगोने का समय नहीं है
अपनी आत्मा को भी भिगोने का एक अच्छा समय है
जहाँ हमारी आत्मा
ढूंढ़ रही है
शरीर के उत्तरायण भाग का मार्ग
सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874