Mattagayand Savaiya/बाबा कल्पनेश
मत्तगयन्द सवैया
(Mattagayand Savaiya)
प्रात जगे रवि पूरब में उससे पहले निज आसन त्यागें।
ले हरि नाम प्रणाम करें करुणाकर से करुणा नित माँगें।।
हे प्रभु दीन दयाल हमें निज बालक जानि सदा अनुरागें।
दें मति शुद्ध प्रबुद्ध रहें हम मोह महा मद को नित त्यागें।।
दूर रहें जितने भव दोष सदा सुचिता उर में निज पाएं।
संत कहे वह मार्ग चलें हमको प्रभु पंथ वही दिखलाएं।।
मंत्र दिए गुरुदेव कृपा कर नित्य जपें अधरों निज गाएं।
मानव की यह देह मिली लिख के महिमा तव गीत सुनाएं।।
क्लेश कटे उर के सब के सब प्रेम पयोधि रहें नित डूबे।
भेद मिटें तन के मन के यह भारत भारत हो नहिं ऊबे।।
पंडित-ठाकुर-शूद्र सभी जन साथ रहें यह हो न अजूबे।
हो अति उच्च सदा यह राष्ट्र छुएँ नभ को अपने सब सूबे।।
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