कोरोना की सांझ / सीताराम चौहान पथिक
कोरोना की सांझ
कोरोना की सांझ
कोरोना को रोको ना ,
मिल कर करो उपाय ।
अखिल विश्व में खलबली ,
दुःखी जनों की हाय ।
सूक्ष्म जीव घातक प्रबल ,
बदल रूप करता प्रतिघात ।
मानवता का घोर शत्रु है ,
विज्ञान दे रहा इसको मात ।
पराजय नहीं मानता यद्यपि,
द्वि-गुणित शक्ति हमें दिखलाता ।
अस्पताल में भीड़ लगी है ,
मरघट में लाशों का तांता ।
बिस्तर ऑक्सीजन कम पड़ रहे ,
टीका – वैक्सीन ब्लैक में बिकते ।
मुनाफाखोर जमाखोर कालाबाजारिए ,
निडर घूमते, कॄत्रिम सेवक ही दिखते ।
मजदूरों की रोजी-रोटी ,
व्यवसायों को लगा ग्रहण ।
विज्ञान-शोध और सफल चिकित्सा ,
कोरोना भाग, तुरंत निकल।
अब कोरोना बख़्शो भारत को
जाओ अपने चीन ।
यूवान तुम्हारी जन्म भूमि है ,
वहीं बजाओ बीन ।
बहुत सताया तुमने जग को,
कोरोना— भज ले हरिनाम।
बार-बार का आना- जाना ,
यहीं बनेगा कब्रिस्तान ।
अभी समय है चीन दौड़ जा,
लैबोरेट्री में जान बचेगी ।
आफ़त बहुत मचा ली तूने ,
पथिक- वहीं पर सांझ ढलेगी

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