Paane Kee Aasha – पाने की आशा / अरविंद जायसवाल

पाने की आशा

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विरह की वेदना तारों से,
चन्दा   तक चली आई।
न मैं समझा न वो समझे,
बहारों तक चली आयी।।

पपीहे    ने    कहा    मुझसे,
किधर को मुड़ चले हो तुम।
नदी    इतनी     हुई   पागल,
किनारों तक चली आयी।।
विरह    की   वेदना तारों से,
चन्दा    तक    चली  आई।

किसे समझाऊँ मैं मधुवन,
किसी की कौन सुनता है।

घटायें मिलने को उनसे,
पहाड़ों तक चली आयी।।
इश्क की राह में अंजाम की,
परवाह        किसको     है।
मिलन की आशा में दरिया,
समंदर तक चली आयी।।
विरह   की वेदना तारों से,
चन्दा    तक चली   आई।

समर्पण है लगन है आग है,
पाने    की    आशा    में।
कृष्ण    के   प्रेम में मीरा,
जहर पीती चली आयी।।

प्रेम   ऐसा   करो अरविंद,
जैसे   जल   से  मछली का।
जुदा     होते   ही   हरदम,
जान  देती  ही  चली आयी।।
विरह  की  वेदना  तारों से,
चन्दा   तक  चली  आई।

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अरविन्द जायसवाल

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