परिवर्तन-parivartan hindi kavita-डॉ.संपूर्णानंद मिश्र

 parivartan hindi kavita

परिवर्तन


परिवर्तनशील है यह संसार
यह ध्रुव सत्य है
नहीं है इसमें कोई संदेह
आज जो चल रहा है
कल बिल्कुल नहीं होगा
नहीं संकोच करती है
प्रकृति परिवर्तन में इसीलिए
संकोच की मुट्ठी खोल देती है
 लुटाती है अपनी संपदा
दोनों हाथों से
जानती है कि
 अंश है इसमें सबका
और जिसका है
उसको मिलना चाहिए
अपनी आत्मा पर कार्पण्य का
 बोझ नहीं ढो पाती है इसीलिए
बावजूद नहीं सीख पाता है
  मनुष्य कुछ भी उससे
समा लेना चाहता है
समस्त सांसारिक वैभव
 को अपने पेट की भरसांय में
गिद्ध दृष्टि रहती है दूसरे के हिस्सों में भी
 जरायम की दुनिया
 तक ले जाता है दूसरों के अंश
 को निगलने का सपाट रास्ता
भयाक्रांत हो जाता है
 परिवर्तन के
 प्रभंजन से ही मनुष्य
नहीं सामना करना चाहता है
बदलाव के अंधड़ का
क्योंकि
 वह जानता है कि
 परिवर्तन की आंधी
 उड़ा ले जाती
  सब कुछ
पहुंचाती है
 सबसे ज़्यादा चोट
अहंकार की थूनी को
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डॉ.संपूर्णानंद मिश्र

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