दीप जलायें मन के सारे / डा. रसिक किशोर सिंह नीरज
दीप जलायें मन के सारे / डा. रसिक किशोर सिंह नीरज
दीप जलायें मन के सारे,
मिट जायें तम के अंधियारे
रह न जाये कोई कोना
मिट्टी भी हो जाये सोना।
सदा राष्टृ – धारा प्रवाह हो
सबसे हरदम ही लगाव हो
त्यौहार सभी खुशियां ले आते
धूम मचा करके यह जाते ।
कलुषित भाव धुलें जन, मन के
भाग्य जगें मां के, रज कण के
वैदिक रीति और संस्कृति से
नेहिल नीरज यहां नियति से।
जगमग-जगमग जग हो जाये
चमचम -चमचम ध्वज लहराये
हिंदू मुस्लिम सब मिल आयें
दीप दान का पर्व मनायें ।
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