भारतीय संस्कार पर कविता | कवि सुखराम शर्मा | Poem on Indian Culture

भारतीय संस्कार पर कविता

भारत माता धन्य, वक्षस्थल पर सभी संजोये है। 

ज्ञान विज्ञानं के तत्व छिपे जो सभी जीव ने बोये है। 

सत्कर्मो से जो कर्म किया, वह जन्मतः प्राप्त किया,

परमात्मा ने अपने हिस्से से, वैसा ही संस्कार दिया।

मानव तन में जब प्राणी , कर्म क्षेत्र पर आता है ,

समय – समय पर ज्ञान हेत , संस्कार में बंध जाता है। 

धर्मोचित कार्य समझ कर , करे सारे शुभ संस्कार ,

सच्चा धर्म कर्म ही पूजा , जीवन का मुख्य आधार। 

अवस्थानुकूल सारे संस्कार, में सबको रहना है ,

जीवन को संकट से निष्कण्टक यदि करना है। 

बाल्यावस्था में प्रथम होता नामकरण संस्कार,

शुभ अवसर को विचार कर, करे मुन्डन संस्कार। 

ब्रह्मचर्य का पालन करें, ज्ञानमार्ग बने आधार,

सारे धर्म सूत्र में बंधकर, जब प्रौढ़ हो जाते है ,

समयानुकूल बच्चे विवाह -सूत्र में बंध जाते है। 

सारे कार्य सफल कर सब , अपना जीवन धन्य बनाते है। 

अंतिम संस्कारों को करके , कर्मोचित फ़र्ज़ निभाते है ,

मानव तन पाकर हर पग पर प्रभु का स्मरण करना है ,

सुखराम सभी से करे निवेदन, संस्कारों में रहना है। 

कवि सुखराम शर्मा

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