Poem on oxygen crisis – प्राणवायु पर कविता

Poem on oxygen crisis  – प्राणवायु पर कविता  / हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

प्राणवायु के लिए तड़पती ,

सहमीं दुनिया सारी है ।


भरत-भूमि पर अद्भुत संकट ,
यह अद्भुत महामारी है ।
प्राणवायु के लिए तड़पती,
सहमीं दुनिया सारी है ।टेक।

ना जाने किसका श्राप आज ,
यूँ फलीभूत दिखता है ,
निरपराध,मासूम,अपाहिज,
पल-पल सबको छलता है ।
देव भूमि इस दिव्य भूमि की,
खण्डित दिखती है गरिमा —
आहत है तप,त्याग ,धर्म,
मानव असहाय सुलगता है।
आराध्य राम! शिव-शक्ति सुनों,
उर कातर करुण पुकार उठी-
पीड़ा कहती कहॉ तुम्हारा ,
चक्र सुदर्शन धारी है ।
प्राण वायु के लिए तड़पती ,
सहमीं दुनिया सारी है ।1।

स्वच्छन्द मचलते मलयज को,
किसने विषपान कराया है ?
मौन हो गया खग-कुल प्यारा ,
किसने अभियान चलाया है ?
बूढ़े मॉ – बाप की लाठी को ,
उफ् मृत्यु वरण करने आई !
पलना के ललना को आखिर,
दुर्दिन क्यों दिखलाया है?
जगतनियन्ता! सुनो निवेदन,
उर-कठोर कोमल कर लो-
क्षमा करो हो चुका बहुतअब-
व्यथित व्यग्र नर- नारी है–
प्राणवायु के लिए तड़पती ,
सहमीं दुनिया सारी है ।2।

अब असमय मृत्यु धरा पर,
काल वरण न कर पाये ,
शस्य-श्यामला धरती की ,
उर्वरा क्षरण न कर पाये ।
लोभ-मोह को त्याग करें हम,
जन-जन के हित रत हों-
लाचार मनुज को मत कर यूँ,
पोषण-भरण ना कर पाये ।
त्राहि -त्राहि है त्राहि माम् ,
अब कुटिल काल मत चलो वाम ,
संरक्षण दो पावन जग को ,
विप्लव की मार दुधारी है।
प्राण वायु के लिए तड़पती ,
सहमीं दुनियॉ सारी है । 3।


उलट-पलट सब कर दिया,

उलट-पलट सब कर दिया,
कोरोना ने आय ।
कल बॉहों की कैद अब,
दूर बैठ बतलाय ।1।

जिसको जैसा चाहता ,
उसको रहा नचाय ।
उसकी लीला है अजब,
सबको राह दिखाय ।2।

कोरोना की लहर में,
व्यथित पड़े शमशान ।
अब भी मानव सोच तू,
कैसी तेरी शान ।3।

दुनिया तेरी है नहीं,
तू तो बस किरदार ।
झूठ आवरण त्याग कर,
बन तू पहरेदार ।4।

poem-on-oxygen
हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’ रायबरेली (उ प्र)

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