हिन्दी दिवस पर कविता | Poems on Hindi Diwas in Hindi

हिन्दी दिवस पर कविता | Poems on Hindi Diwas in Hindi

१४ सितम्बर १९४९  जब भारत सरकार  ने निर्णय लिया हिन्दी दिवस मनाने का भारत देश में , इस दिन  छात्र – छात्राएं हिंदी के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए काव्य – प्रतियोगिता , निबन्ध , वाद – विवाद ,राजभाषा सप्ताह आदि कार्यक्रम  हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए  किये जाते है , हिंदीरचनाकर की तरफ से हिन्दी विद्वानों की रचना पाठको के सामने प्रस्तुत है। जो  हिंदी दिवस २०२१  पर आधारित है।

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हर भाषा में कुछ न कुछ सार है,
पर हमको तो सिर्फ़ हिन्दी से प्यार है।

-अथर्व मिश्र

 

कविता -१

हिंदी हमारी शान है

(Hindi Diwas Poems in Hindi 2021)

हिंदी हमारी आन है हिंदी हमारी शान है
हम हिंद के बशिंदे हे हिंदी हमारी जान है
बात आजकल की नहीं है बरसो पुरानी बात है
कल भी थी आज भी है हिंदी हिंद का ताज है
कौन भुला सकता है बाल्मीकि और व्यास को
कौन है वो जो अनजान हैं रामायण और महाभारत से
जीवन के पथ आलोकित करते दोहे कबीर सूरदास के
तुलसीदास की रामचरित्र मानस मैं आदर्श जीवन जीने का संदेश है
बुद्ध के उपदेशो ने सही गलत का मार्ग प्रशस्त किया
प्रेमचंद की गोदान कफन एक निर्धन किसान की पीड़ा को बयां किया
कितनों के मैं नाम गी नाउ अनगिनत हिंदी साहित्य के यह सितारे है
हिंदी आज भी इन सितारों से ही पश्चिम में सम्मानित है
आज हिंदी सिर्फ हिंद में ही नहीं अन्य देशो मे भी अपनी छटा बिखेरती है।

प्रेमलता शर्मा 

कविता -२

मातृभाषा हिंदी

Hindi Diwas Poems in Hindi

अंग्रेजी या आंग्ल भाषा, का चुभता सदा है शूल,
हिंदी हिंदुस्तान की भाषा, सब गए हैं भूल ।।

माँ”, पिताजी कहने में, अब खूब हैं शर्माते,
मम्मी-मम्मी, डैडी-डैडी, जोर जोर चिल्लाते ।।

अंग्रेजी का भुत चढ़ा जो, सबके उपर डोले,
आज का बच्चा मुंह खोले तो, अंग्रेजी ही बोले ।।

सुन पराये देश की भाषा, हम क्यों इतना ललचायें,
टिपिर-टिपिर जो इंग्लिश बोले, हम टुकुर-टुकुर मुह बाएं ।।

हिंदी पढ़ने को जल्दी अब, न हो कोई तैय्यार,
क्या हमारी मातृ भाषा, है इतनी बेकार ।।

अंग्रेजी बोलने वाले, करोड़ो है धरती पर,
क्या सारे बोलने वाले, बन गए यहाँ कलेक्टर ?

कुछ न्याय व्यवस्था भी करती है, हिंदी का विरोध,
अंग्रेजी में ले के आओ, तुम अपना अनुरोध ।।

कुछ सरकारी दफ्तरों का, हम करते दिल से स्वागत,
मातृभाषा में जहाँ काम होता, और जहाँ दे रही दस्तक ।।

जापान, रूस, चीन, अमेरिका, सभी की हैं, अपनी भाषाएँ,
“भारत वासी” स्वदेश की भाषा बोलने में ही, शर्मायें ।।

जापान रूस चीन अमेरिका की है अपनी भाषाएँ,
स्वदेश की भाषा पढ़कर ही सब खूब इतरायें ।।

आज ये सब देश भी करते, हिंदी का अभिनन्दन,
अपने ही देश में न मिलता, हिदी को समर्थन ।।

था जब भारत सोने की चिड़िया, थी तब कौन सी भाषा ?
हैं जानते हम सब फिर भी, बोले आंग्ल भाषा ।।

आज अपनी धरती पर हैं, बहुत सी भाषाएँ,
आओ मातृभाषा को अब हम, आगे खूब बढ़ाएं ।।

अखिलेश प्रताप सिंह (रवि)

कविता -३  

अनगिनत गुणों की खान है हिन्दी।

Poem on Hindi Diwas 2021

नित नूतन जोश भरे सब में ,अति जोश भरा वह गान है हिन्दी ।
मन हर्षित होकर झूम उठे, वह मीठी -मीठी तान है हिन्दी।।
इतिहास गवाह सदा से रहा, इस देश की आन व बान है हिन्दी।
कमज़ोर नहीं लाचार नहीं ,अनगिनत गुणों की खान है हिन्दी।।

अति पावन भाषा वेदों की जो ,उसकी यह संतान है हिन्दी।
शुरुआत करो तुम हिन्दी से ,देखो कितनी आसान है हिन्दी।।
तुलसी ,सूर ,कबीर, रहीम व मीरा की पहचान है हिन्दी।
पंत, प्रसाद ,निराला और ,महादेवी की शान है हिन्दी।।

आँचल में अपरिमित शब्द लिए, भाषाओं के बीच महान है हिन्दी।

सब भाषाएं यदि मौसी हैं तो ,उनमें मातु समान है हिन्दी।।
इस देश के रहने वाले हर नारी -नर का सम्मान है हिन्दी।
लगता है यही अब जन-जन को ,बस ईश्वर का वरदान है हिन्दी।।

कुछ लोग बुलंदी पर हैं जो ,उनकी ख़ातिर सोपान है हिन्दी।
यह भी सच है कितनों के लिए तो ,जीने का सामान है हिन्दी।।
परदेश में यूँ फल-फूल रही ,लगता ही नहीं मेहमान है हिन्दी।
तब ‘राज’ कहो किस कारण से ,अपने घर में अनजान है हिंदी।।

–  राजेन्द्र वर्मा’ राज ‘

कविता -४  

हिन्दी पूछती है दोस्तों 

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मैं हूँ रसखान की पुत्री मुझे तुलसी ने पाला हैं

यही कारण है चारों सिम्त मेरा बोलबाला है।

 

बहुत आशाएँ थीं जिनसे जिन्हे नाजों से पाला है.

उन्हीं बच्चों ने अब मुझको मेरे घर से निकाला है।

 

सुभद्रा ने दिये रोशन किए है नाम से मेरे.

महादेवी की ममता का मेरे घर में उजाला है।.

 

कही नीरज पाती हूँ कही बच्चन की मधुशाला.

मेरे बच्चों ने मेरे रूप को हर रंग मेंं ढाला है।

 

ये हिन्दी पूछती है दोस्तों साहित्यकारों से.

कहां है पंथ और दिनकर कहां मेरा निराला है।

 

जहाँ पर प्रेम भाईचारे की शिक्षा मिलें सबको.

कहां है आज वह शिक्षक कहां वह पाठशाला है।

 

कहां जाएँ ये निर्धन मित्र अपनी प्रार्थना लेकर.

सुदामा तो हज़ारों है कहां अब मुरलीवाला है।

 

मैं हर ठोकर का जीवन मेंं बहुत सम्मान करता हूँ.

यही ठोकर जिन्होंने आज तक मुझको संभाला है।

 

विचारों के प्रदूषण से वह अकरम बच नहीं सकते.

विचारो मैं जहाँ फ़ैला हुआ मकड़ी का जाला हैं।

 – इकबाल अकरम वारसी

कविता -५  

भारत की पहचान है हिन्दी

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भारत की पहचान है हिन्दी
भरत भूमि की शान है हिन्दी
भारत की पहचान है हिन्दी।

जन-जन की यह मधुमय वाणी
सुरसरि सम हितकर कल्याणी
माँ है माँ का मान है हिन्दी
भरत भूमि की शान है हिन्दी ।

एक सूत्र में सबको बाँधे
एक ईष्ट यह, सब आराधे
नैतिकता का ज्ञान है हिन्दी
भरत भूमि की शान है हिन्दी ।

गत वैभव की अमिट कहानी
सौम्य सुघर सुंदर वरदानी
संस्कृति का अभिमान है हिन्दी
भरत भूमि की शान है हिन्दी ।

विषपायी मीरा की प्यारी
भारतेन्दु की राजदुलारी
कवियों की मृदुगान है हिन्दी
भरत भूमि की शान है हिंदी।

कबिरा की यह अटपट बानी
तुलसी की है राम कहानी
मानस का तन प्राण है हिन्दी
भरत भूमि की शान है हिन्दी ।

नागमती की विरह वेदना
राधा की है प्रणय साधना
केशव का गुणगान हैं हिन्दी
भरत भूमि की शान है हिन्दी।

नीर भरी यह दुख की बदली
पीर भरी “आँसू” में मचली
परिवर्तन का भान है हिन्दी
भरत भूमि की शान है हिन्दी ।

सरस्वती सम बहे त्रिवेणी
भारत माँ की अनुपम वेणी
रहिमन औ रसखान है हिन्दी
भरत भूमि की शान है हिन्दी ।

कभी तोड़ती पथ पर पत्थर
चलती कभी लकुटिया लेकर
दीन दुखी का त्राण है हिन्दी
भरत भूमि की शान है हिन्दी ।

यशोधरा का पूत नियम है
और उर्मिला का संयम है
कितनी सरल महान है हिन्दी
भरत भूमि की शान है हिन्दी ।

डॉ. रसिक किशोर सिंह नीरज

कविता -६

हिंदी काव्य का सौंदर्य

विविध विधाओं के खिल रहे कुसुम यहाँ,
हिंदी साहित्य-संसार बहुत सुहाना है।

शिल्प ताजमहल से भी सुंदर है इसका,
हर गीत कंचन हर शब्द नगीना है।

अनंत अलंकारों का आगार है यहाँ पर,
तीन गुणों की खान नौ रसों का खजाना है।

बिम्बों से साकार हो उठती है काव्य सुषमा,
प्रत्येक भाव लगता जाना पहचाना है।

कल्पना की उड़ान पंछियों से ऊंची है यहाँ,
यथार्थ चित्रण में सबने लोहा माना है।

रूपकों का रूप है, उपमानों का उजाला है,
श्लेष की परतें है, यमक का दुशाला है।

शैली में इसकी नित नूतनता निराली है,
भाषा सरल सहज और अलबेली है।

छंदों का अजब अजायबघर भी है यह,
इसकी शब्दशक्तियां भी प्रभावशाली हैं।

युग युग का गौरव है वैभव निराला है,
छाया है प्रगति है और प्रयोगशाला है।

शैलेन्द्र कुमार 

कविता -७

हमारी हिंदी

धरा पर है सरस बहती, वो अमृत पान है हिंदी
है भारत माँ के मस्तक का, बड़ा सम्मान ये हिंदी
कि जिसने है दिया सौभाग्य, पावन हिंद में आओ
उसी का नाम भारतवर्ष उसी की शान है हिंदी
बिना हिंदी कभी कोई भावना पूर्ण ना होती
समेट खुद में सब भावों को है वो इक चूर्ण सी हिंदी
जो अपनेपन को अपने आप ही लेकर उपजती है
वही है राम की हिंदी वही रहमान की हिंदी
बहे हर आरती के स्वर सजे मुस्कान -सी हिंदी
बढ़े गौरव हमारा है, है हिंदुस्तान -सी हिंदी
ये हिंदी -हिंद के जन जन में बसती एक आशा है
हो पूरे विश्व में पूजित मेरी हिंदी वो भाषा है
जुड़े जब हाथ दोनों दे वही, अजान है हिंदी
कल्पना का हो मन पुलकित वही अरमान है हिंदी
है भारत माँ के मस्तक का बड़ा सम्मान ये हिंदी

कल्पना अवस्थी

कविता -८

हिन्दी

हिन्दी का हर
रंग निराला
बोली-भाषा
करे उजाला
घुली मिले
मिसरी सी
मन में
प्रेम से महके
हर ऑंगन में
जब अजनबी
देश में जाएं
हिन्दी से
अपनापन पाएं
गर्व हमारे
देश का हिन्दी
चमके हर
परिवेश में हिन्दी
बस इतनी
इच्छा है बाकी
शान बढ़े
हिन्दी की खासी
हिन्दी से
सम्मान हमारा
हिन्दी है
अभिमान हमारा

जय हिन्द जय हिन्दी

– रश्मि लहर

कविता -९

देश का अभिमान हिंदी

देश का अभिमान हिंदी
पावनी गतिमान हिंदी

बांधती है एकता में
व्याप्त जन-जन के मनों में
शब्द संस्कृतमय मधुर
संगीत की सुरतान हिंदी।

भाव भाषा में सुरक्षित
किंतु फिर भी है उपेक्षित
विश्व का कल्याण करती
राष्ट्र का उत्थान हिंदी।

संस्कृति की गति यही है
धर्म की शुचि मति यही है
कर्म की सदगति यही है
प्रगति गौरवगान हिंदी।

कर रही है हित सभी का
झुकी कब इसकी पताका
कर्म से मन से वचन से
हमारा अभिमान हिंदी।

प्राणदायिनी अमियसम है
पुण्य सुरसरि सम सुगम है
काल की गति सी अगम है
सृष्टि का वरदान हिंदी।

हैं सरलतम भाव जिसके
हैं सहस्र प्रवाह इसके
वंदना ‘ नीरज’ करूँँ मैं
काव्य का सम्मान हिंदी।

डॉ. रसिक किशोर सिंह नीरज

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