कविता टाइफायड में / डॉ सम्पूर्णानंद मिश्र
कविता टाइफायड में
आज मैं लिख
रहा हूं कविता टाइफायड में
क्यों लिख रहा हूं
नहीं समझ पा रहा हूं
हां आज मन कुछ उदास है
क्योंकि नहीं कोई मेरे पास है
जब मैं स्वस्थ था
तो लोग मुझे ढूंढ़ते थे
मुझे तलाशते थे
मेरे साथ के लिए
नए- नए तरीके अपनाते थे
मैं आंगन में खिली
उन कलियों जैसा हो गया हूं
जहां भौंरा आता था
कली से
मीठी- मीठी बातें बतियाता था
ज़िंदगी से मौत की यात्रा में साथ चलने के लिए मीठी-मीठी
कसमें खाता था
आज जब एक हल्की सी आंधी आयी
और कली की बीमारी भौंरे के माथे पर भयावह रूप बनायी
और वही कली
ज़िंदगी और मौत से आज
दो- चार हो गयी
तब उसी भ्रमर ने अपना विविध रंग दिखाया
जीने का नया ढंग उसे सिखाया
बीमारी में कली को छोड़
आज वह रैन-बसेरा हो गया
ऐसे में
निश्चित रूप से कविता फूटती है
किसी कवि के मस्तिष्क को झकझोरती है
वह लिखने के लिए विवश होता है
दुनिया को समझने का नया सबक सीखता है
तब टाइफायड में कविता लिखी जा सकती है
ऐसा आज महसूस हो गया
कि हां टाइफायड में भी कविता लिखी जा सकती है !
डॉ सम्पूर्णानंद मिश्र
फूलपुर प्रयागराज
7458994874
प्रतिक्रिया
लव इन द टाइम ऑफ़ कॉलरा एक बेहतरीन उपन्यास है गैब्रिएल गार्सिया मार्खेज की।
उसी की याद दिला गई आपकी कविता।
अभिनंदन – प्रोफेसर हूबनाथ