Ruchi Savaiya – रुचि सवैया / बाबा कल्पनेश

Ruchi Savaiya – रुचि सवैया / बाबा कल्पनेश

रुचि सवैया

विधान-212×7+2

कौन सी है दिशा जान पाया नहीं अज्ञता में फँसा घूमता हूँ।
मोह की है सुरा आज देखो पिया मस्त हो बेसुरा झूमता हूँ।।
रात रानी खिली है बुलाती मुझे इत्र बाजार के चूमता हूँ।
द्वार भंडार पूरा खुला है जहाँ सूम के चित्त की सूमता हूँ।।

सौम्य आकाश पूरा मिला है मुझे छुद्रता की गली मैं चला हूँ।
गीध सी दृष्टि मेरी हुई आज है पेट के ही लिए मैं पला हूँ।।
अन्न को देखता हूँ लुभाया हुआ मौन निष्णात ऐसी कला हूँ।
प्रात में रात में गीत गाया यही गीत का मैं अनोखा गला हूँ।।

नित्य अभ्यास होता जिसे छंद का काव्य का तो प्रणेता वही है।
गेयता भी रहे छंद लालित्य हो जान लें काव्य चेता वही है।।
काल रेखा मिटा जो सके छंद से भाव का तो विजेता वही है।
छंद का ज्ञान देती जिसे माँ स्वयं छंद विस्तार देता वही है।।

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बाबा कल्पनेश
श्री गीता कुटीर-12,गंगा लाइन, स्वर्गाश्रम-ऋषिकेश

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