सर्वहारा | सम्पूर्णानंद मिश्र

सर्वहारा | सम्पूर्णानंद मिश्र

हां मैं सर्वहारा हूं
लेकिन हारा नहीं हूं
थका नहीं हूं
रुका नहीं हूं
झुका नहीं हूं
टूटा नहीं हूं
कर्म में जुटा हूं
ईमान- पथ पर
अविचलित होते हुए
निरंतर अथक चलता ‌रहता हूं
रुकना मेरी किस्मत
की किताब में नहीं है
चलना ही मेरी ज़िन्दगी है
श्रमसीकर से नहाता हूं
खर आतप में ही छांव पीता हूं
हां मैं सर्वहारा हूं
एक अशेष ज़िंदगी जीता हूं
स्वाभिमान के कुएं
का खींचा पानी ही पीता हूं
अपने जांगर के
बलबूते ही जीता हूं
मोटी-मोटी चित्तीदार
रोटियां ही मेरे लिए
‌विधाता का वरदान है

रोगमुक्त जीवन ही
‌‌ मेरा संसार है
भर रात सोता हूं
दुःख में भी नहीं रोता हूं
धैर्य नहीं खोता हूं
श्रम की कमाई है
जिंदगी में समस्याओं की
ही खाईं है
‌‌ फिर भी
‌ हारा नहीं हूं
‌‌ थका नहीं हूं
रुका नहीं हूं
निरंतर चलना ही
मेरी अशेष ज़िंदगी है
क्योंकि मैं सर्वहारा हूं
‌‌ हां मैं सर्वहारा हूं!

श्रम दिवस पर देश के असंख्य मजदूर भाई बहनों को मेरा नमन

सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी

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