महाकुंभ और त्रिवेणी स्नान के कुछ निर्गुण दोहे | नरेन्द्र सिंह बघेल
महाकुंभ और त्रिवेणी स्नान के कुछ निर्गुण दोहे | नरेन्द्र सिंह बघेल
(1 )
बचपन से हमने सुना,
मोक्षदायिनी गंग ।
धोकर तन के पाप को ,
करती काया चंग ।।
( 2 )
गोते कितने खा रहे ,
लिए पाप का बोझ ।
” महाकुंभ ” स्नान से ,
मिल जाएगा मोक्ष ।।
( 3 )
ऐसा ही भ्रम पाल कर ,
गये ” त्रिवेणी ” तीर ।
मूढ़ जगत भरमा गया ,
घटी न फिर भी पीर ।।
( 4 )
सच्चा -सच्चा लिख दिया ,
समझ गये सब संत ।
जिनके समझ न आएगा,
समझो वही महंत ।।
( 5 )
कबिरा की वांणी भली ,
धोए मन के पाप ।
जिनके पाप न धुल सके ,
वही करें संताप ।।
( 6 )
निर्गुण तन – मन राखिए ,
करें खूब उपकार ।
यही मोक्ष का पथ प्रबल ,
करता भव से पार ।।
**** नरेन्द्र ***