नसीहत | सम्पूर्णानंद मिश्र | हिंदी कविता

नसीहत | सम्पूर्णानंद मिश्र | हिंदी कविता पिता ने ‌पुत्र को‌नसीहत देते हुएकहा कि बेटाजिंदगी में पानी की तरहमत बहनासपाट‌ जीवन मत जीनारुकावटें आएंगीतुम्हें विचलित करजायेंगीतोड़ने ‌का प्रयास ‌किया जायेगाटूटना … Read More

आदमी | सम्पूर्णानंद मिश्र

आदमी | सम्पूर्णानंद मिश्र आदमी आज बेचारा हैपरिस्थितियों का मारा हैमहंगाई से तंग हैसिस्टम से मोहभंग हैस्वयं से जंग हैअब जिंदगी ‌में न‌ हीकोई रंग हैन अपने अब संग हैरोज़ … Read More

संग हम साथ होंगे | सम्पूर्णानंद मिश्र

संग हम साथ होंगे | सम्पूर्णानंद मिश्र क्योंभाग रहे होहाथ मेरा छुड़ा रहे होमैं लेने जब आऊंगीलेकर ही जाऊंगीफिर भी भाग रहे होबाहें मेरी छुड़ा रहे होकत्ल भी करते होइल्ज़ाम … Read More

ख़ारिज करता है पिता / सम्पूर्णानंद मिश्र

ख़ारिज करता है पिता / सम्पूर्णानंद मिश्र नहीं पनपसकता लघु पौधाबरगद की छांव मेंपिताख़ारिज करता हैउक्त कथनक्योंकिस्पष्ट अंतर दिखाई देता हैपिता और बरगद मेंजहां पिताआत्मीयजन कोअपना सिरमौर बनाता हैस्नेह के … Read More

सलीब / सम्पूर्णानंद मिश्र

सलीब / सम्पूर्णानंद मिश्र सलीब जीज़सतुम भोग-विलास के लिएनहीं जन्मे थेबल्कि किसीऔर प्रयोजन के लिएतुम्हेंडराया गयाविभिन्नयातनाएं दी गईंतुम्हारे ऊपरपत्थर फेंके गएबेथलहम मेंतुम्हें दुष्चरित्रघोषित किया गयाप्रलोभ के चक्रव्यूह मेंफंसाया गयादुर्योधन और … Read More

विशिष्ट रचना / सम्पूर्णानंद मिश्र

विशिष्ट रचना / सम्पूर्णानंद मिश्र विशिष्ट रचनाहोती हैंस्त्रियांविधाता कीनिष्कपट होती हैंनिस्वार्थ होती हैंसमर्पित होती हैंशब्दों के कटु वाणी के बाणका संधान नहीं करतीक्रोध की ज्वालाप्रज्वलित होने परकिसी पर तेज़ाब नहीं … Read More

कलुआ की मौत / सम्पूर्णानंद मिश्र

कलुआ की मौत / सम्पूर्णानंद मिश्र आज सुबह-सुबह ‌कलुवा कुत्ताठंड लगने सेमर गयाबहुत वफादार थाएक सशक्त पहरेदार थामानवीय मूल्यों में ‌कत्तई‌नहीं विश्वास थाआदमियों के चाल-चलनको दूर से ही भांपता थाखाकी … Read More

श्रद्धा बनाम छल | सम्पूर्णानंद मिश्र

श्रद्धा बनाम छल | सम्पूर्णानंद मिश्र नारी जब जबतुमको कुचला जाता हैहृदय दहल जाता हैअब तुम सीता लक्ष्मीअहल्या जैसी बन कर‌जी नहीं सकती होदिन में भी तुमसुरक्षित नहीं रह सकती … Read More

मूक / सम्पूर्णानंद मिश्र

मूक / सम्पूर्णानंद मिश्र मूक मूकहोना आज बहुतजरूरी हैनिकल जाता हैजीवन की हर उलझन सेमूक व्यक्तिजो जितना बोलता हैउतना ही लड़ता हैबाहर और भीतर दोनोंहमेशावहअशांत रहता हैअहंकार कोघलुआ में ले … Read More

काली रात | सम्पूर्णानंद मिश्र

काली रात | सम्पूर्णानंद मिश्र (16 दिसंबर 2012) राष्ट्र कलंकित करने वालों कोसजा आखिर मिल गईसर्वोच्च न्यायालय के आदेश सेचार दरिंदों की गर्दनें झूल गईएक दिन भी ऐसा नहीं हुआजिस … Read More

वसुधैव कुटुंबकम् / हूबनाथ

वसुधैव कुटुंबकम् / हूबनाथ हमारी बस्तियाँभले पक्की हो गई हैं घरों में बन गएशौचालयतुम्हारे घरों की तरह हमारे कपड़ेतुम्हारी तरह साफ़सुथरे हो गए हमें भी मिलने लगीदो वक़्त की रोटीभरपेट … Read More

परख / सम्पूर्णानन्द मिश्र

परख किस पायदानपर खड़े हैंमूल्यांकन हो इसकाक्योंकि फूलों कापायदानपहुंचा तो सकता है शीर्ष परलेकिन टिका नहीं सकतादेर तक हमें वहांहो सकता हैख़तरनाकएवं जानलेवाजिस पायदान परमुसीबतों का शूल होरखो धीरे- धीरे … Read More

विमुख / सम्पूर्णानंद मिश्र

विमुख / सम्पूर्णानंद मिश्र सत्य से विमुख व्यक्तिफोटो की तरफ़ भागता हैक्योंकिभीतर अपने अमा लेता हैफोटोपेट के पाप कोऔरनिष्पाप चेहरादिखाता है समाज कोवैसे आजकलएक चेहरे सेजीवन जीनापानी पर लकीरें खींचना … Read More

पत्र की व्यथा/ सम्पूर्णानंद मिश्र

पत्र की व्यथा/ सम्पूर्णानंद मिश्र पत्र अपनी व्यथासुना रहा थाअतीत के सुखद दिनकी गाथा गा रहा थालोग दिल की बात पत्रपर लिख जाते थेप्यार की बातें कह जाते थेमहीनों पोस्टआफिसके … Read More

मृत्यु के बाद / सम्पूर्णानंद मिश्र

मृत्यु के बाद / सम्पूर्णानंद मिश्र लेकर जाती हैऔरत अपनी मृत्यु के बादघर की समृद्धिबच्चों का बचपनबेटियों का अल्हड़पनघर की दीवारों‌ की मुस्कुराहटचौखट की गोपनीयताखिड़कियों की रौशनीचूल्हे- चौकों की मर्यादाआंगन … Read More