जानवर भीतर का/सम्पूर्णानंद मिश्र

जानवर भीतर का जानवर भीतर का न जाने कब से देहगाड़ी पर भीतर के मरे हुए पशु को ढोते रहे यूँ ही हर बार फेंकते रहे सड़क पर बियाबान में … Read More

ख़तरा भीतर से है/डॉ सम्पूर्णानन्द मिश्र

ख़तरा भीतर से है ख़तरा भीतर से है बाहर से नहीं चाहे वैचारिक हो या सामाजिक बध किया है हमेशा हमारी शक्तियों का आंतरिक दुर्बलताओं ने नहीं बोने देना चाहिए … Read More

Hindi Poems of Sampurnanand Mishra- क्रूर काल और भागो- भागो

Hindi Poems of Sampurnanand Mishra क्रूर काल ग्रास हो गया क्रूर काल का तीस साल में ही रामू विधवा बना दिया पत्नी को भरी जवानी में छिप-छिप कर रोने लगी … Read More