यही पैगाम है मेरा | पैगाम | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

यही पैगाम है मेरा | पैगाम | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’ यही पैगाम है मेरा रहें सब लोग मिलजुल करबने सुन्दर सहज डेरा,करें सब देश की सेवा,यही पैगाम है मेरा।टेक। न … Read More

सलीब / सम्पूर्णानंद मिश्र

सलीब / सम्पूर्णानंद मिश्र सलीब जीज़सतुम भोग-विलास के लिएनहीं जन्मे थेबल्कि किसीऔर प्रयोजन के लिएतुम्हेंडराया गयाविभिन्नयातनाएं दी गईंतुम्हारे ऊपरपत्थर फेंके गएबेथलहम मेंतुम्हें दुष्चरित्रघोषित किया गयाप्रलोभ के चक्रव्यूह मेंफंसाया गयादुर्योधन और … Read More

कलुआ की मौत / सम्पूर्णानंद मिश्र

कलुआ की मौत / सम्पूर्णानंद मिश्र आज सुबह-सुबह ‌कलुवा कुत्ताठंड लगने सेमर गयाबहुत वफादार थाएक सशक्त पहरेदार थामानवीय मूल्यों में ‌कत्तई‌नहीं विश्वास थाआदमियों के चाल-चलनको दूर से ही भांपता थाखाकी … Read More

वो मेरी हक़ीकत | नरेंद्र सिंह बघेल | हिंदी गीत

वो मेरी हक़ीकत | नरेंद्र सिंह बघेल | हिंदी गीत वो मेरी हक़ीकत ,वो मेरा तराना ।कि तुम याद रखना,न तुम भूल जाना ।।कि संग- संग जो मिलकर ,गुजारे थे … Read More

श्रद्धा बनाम छल | सम्पूर्णानंद मिश्र

श्रद्धा बनाम छल | सम्पूर्णानंद मिश्र नारी जब जबतुमको कुचला जाता हैहृदय दहल जाता हैअब तुम सीता लक्ष्मीअहल्या जैसी बन कर‌जी नहीं सकती होदिन में भी तुमसुरक्षित नहीं रह सकती … Read More

मूक / सम्पूर्णानंद मिश्र

मूक / सम्पूर्णानंद मिश्र मूक मूकहोना आज बहुतजरूरी हैनिकल जाता हैजीवन की हर उलझन सेमूक व्यक्तिजो जितना बोलता हैउतना ही लड़ता हैबाहर और भीतर दोनोंहमेशावहअशांत रहता हैअहंकार कोघलुआ में ले … Read More

काली रात | सम्पूर्णानंद मिश्र

काली रात | सम्पूर्णानंद मिश्र (16 दिसंबर 2012) राष्ट्र कलंकित करने वालों कोसजा आखिर मिल गईसर्वोच्च न्यायालय के आदेश सेचार दरिंदों की गर्दनें झूल गईएक दिन भी ऐसा नहीं हुआजिस … Read More

आंसू भर रोए | प्रतिभा इन्दु | Hindi kavita

आंसू भर रोए | प्रतिभा इन्दु | hindi kavita आंसू भर रोए…………….. जितना ही खो कर पाया हैउतना ही पाकर खो डाला !दरवाजे पर हंस लेते हैंआंगन में आंसू भर … Read More

कट जाने दो तन्हॉ | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

कट जाने दो तन्हॉ,जिन्दगी को यूॅ ‘हरीश ‘ हम बात मोहब्बत की,जुबॉ तक लाते हैं,वे बुरा न मान जायें,कह नहीं पाते हैं।1। गजब बेबशी है,हर एक जिन्दगी में,बस प्यार के … Read More

तुम्हारी तोतली बोली / पुष्पा श्रीवास्तव शैली

तुम्हारी तोतली बोली / पुष्पा श्रीवास्तव शैली तुम्हारी तोतली बोलीजब धीरे धीरे बदलने लगीसाफ आवाज में ,तब भी मैं डरी।तुम्हारे नन्हे कदम जबबिना मेरे सधने लगेतब भी मैं डरी।तुम्हारी आंखों … Read More

मैं सहज ,शाश्वत युग ध्वनि हूं / श्रवण कुमार पान्डेय,पथिक

गुन्जन अक्षुष्ण जिसका सर्वथा,मैं सहज ,शाश्वत युग ध्वनि हूं,! प्रवाह,पावन पवन का ,मुझमें समाया,कृति समर्थ,रविदाह ने मुझको तपाया,मुझमें समाहित,नीरवत निर्मल तरलता,मुझको सुलभ है व्योमवत ,इक क्षत्रता, जिससे सरस जीव जीवन,सुहृद … Read More

परख / सम्पूर्णानन्द मिश्र

परख किस पायदानपर खड़े हैंमूल्यांकन हो इसकाक्योंकि फूलों कापायदानपहुंचा तो सकता है शीर्ष परलेकिन टिका नहीं सकतादेर तक हमें वहांहो सकता हैख़तरनाकएवं जानलेवाजिस पायदान परमुसीबतों का शूल होरखो धीरे- धीरे … Read More

कौन हवाओं से पूछेगा / हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश

सजलकौन हवाओं से पूछेगा, पल-पल प्रियवर याद तुम्हारी,तड़पा जाती है,गुलशन के हर गुल-ओ-खार को,महका जाती है।1। राख हुए जंगल सी बस,अपनी राम-कहानी,दो पल रुककर पागल मन को,समझा जाती है।2। तन्हॉ … Read More

विमुख / सम्पूर्णानंद मिश्र

विमुख / सम्पूर्णानंद मिश्र सत्य से विमुख व्यक्तिफोटो की तरफ़ भागता हैक्योंकिभीतर अपने अमा लेता हैफोटोपेट के पाप कोऔरनिष्पाप चेहरादिखाता है समाज कोवैसे आजकलएक चेहरे सेजीवन जीनापानी पर लकीरें खींचना … Read More

विवशता /सम्पूर्णानंद मिश्र

विवशता संवादके लिए माध्यमबहुत जरूरी होता हैलेकिनजब माध्यम हीपक्षपात के ऐनक सेघटनाओं कोदेखने- सुनने और अभिव्यक्तकरने लगेतोनहीं कोई रोक सकता हैलाक्षागृह मेंआग लगने सेइसलिएझूठ और कपट के शोर मेंयदि सत्य … Read More