नवल सृजन के अंकुर फूटें/ हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश
नवल सृजन के अंकुर फूटें शान्ति दूत बन काल-चक्र को,हमें नियंत्रित करना होगा ,रक्षा कातर मानवता की,सत्य-न्याय हित करना होगा। टेक। उजड़ा घर , वीरान शहर है,विश्वपटल पर मचा कहर … Read More
नवल सृजन के अंकुर फूटें शान्ति दूत बन काल-चक्र को,हमें नियंत्रित करना होगा ,रक्षा कातर मानवता की,सत्य-न्याय हित करना होगा। टेक। उजड़ा घर , वीरान शहर है,विश्वपटल पर मचा कहर … Read More
औरत पर कविता | Kalpana Awasthi New Kavita किन किन निगाहों से वो दो-चार होती हैऔरत क्यों सारी उम्र अखबार होती हैकभी मां बनी, कभी बनी बहनकभी बेटी बनी कभी … Read More
इन्हीं आंखों ने देखा है | डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र शिष्टजनक्याइन्हीं आंखों ने देखा है ?सारा मंज़रअपना छिनता हुआ बचपन हां भाई देखा है इन्हीं आंखों ने! बाजार के गोलगप्पे जहां … Read More
गाओ गीत जगत हितकारी / बाबा कल्पनेश आज का छंद-माता परिचय-एकादक्षरावृत्ति गाओ गीत जगत हितकारी।पाओ मीत हृदय दुखहारी।।मिथ्या है सुख-दुख कर नाता।गाते वेद जगत यह गाता।। तोड़ो बंध सकल जग … Read More
बोलो कबीर आशंका अविश्वासनकारात्मक सोचकी कुक्षि सेअहंकार और ईर्ष्या का उदय होता हैजिसका पथ जाता हैसीधे विनाश के गड्ढे मेंमाने बैठें हैं सत्य इसी कोकुछ तथाकथितजो छल, पाखंड, ढोंग और … Read More
होली पर कविता 2022: Holi Poem Kavita in Hindi | रंग लगाएं होली में फागुनी रंग में रंगा प्रेरणा का एक होली गीत । नरेंद्र सिंह बघेल की रचना आपके … Read More
प्रकृति के “आंचल” की सौगात का एक दृश्य बिंब ,एक लघु प्रयास । भेद कर तम का प्रहर फिर ,भुवन भाष्कर आ गया ।धूप का “आँचल “सुनहरा ,फिर क्षितिज पर … Read More
नहीं रहा मन अपने वश में | मत प्यार कीजिए | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’ रोम-रोम में अकुलाहट है,पल-पल सुधि में घबराहट है,नहीं रहा मन अपने वश में,कुछ और नहीं फगुनाहट … Read More
१. बनजारों सा जीवन अपना जब-जब याद करोगे प्रियतम,मलय सुरभि बन छाऊॅगा,बनजारों सा जीवन अपना,गीत प्रभाती गाऊॅगा ।टेक। पावन सरल सहज मनभावन,उर-वीणा के तार हमारे,तेरी सुधि की अमराई में,तान छेड़ते … Read More
बहुरंगी भेड़िए / संपूर्णानंद मिश्र ऊपर से साफ़- सुथरी हैयह सतरंगी दुनियाभीतर कुछ धुंधला, अस्पष्टसंघर्ष ही संघर्षकुछ खास उनके लिए जोनेपोटिज्म की सूईअपनी बांहों में गोदवाए बिनामाला- फूल अक्षतरोली चढ़ाएं … Read More
चुप्पियां | सम्पूर्णानन्द मिश्र | Chuppiyan चुप्पियां टूटनी चाहिएचुप्पियां वक़्त परताकि जल न जायझूठ की आंच पर सत्य की रोटीमानाकिचुकानी पड़ती हैएक बहुत कीमतचुप्पियों को बोलने कीलेकिन तोड़ने से इस … Read More
कहां पर छिपी हो | Kaha par chipi ho सूफीवाद पर आधारित कविता, जहां नारी को ब्रह्म तथा पुरुष को साधक माना गया है। कहां पर छिपी हो बताओ प्रिये … Read More
सुर्खुरूॅ होने में, वक्त लगता है | सजल | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘ हरीश’ सुर्खुरूॅ होने में, वक्त लगता है। सिलसिला यादों का ,चलने दीजिए,ख्वाब सा ख्यालों में, रहने दीजिए।1। मैं … Read More
शहीदों को नमन | सीताराम चौहान पथिक दीपक स्वयं निरंतर जल करदेता दिव्य प्रकाश ।सैनिक सीमाओं पर लड़ता,राष्ट्र को देता आत्म विश्वास । दोनों का यह आत्म विश्वास,दिवाली समॄद्ध तभी … Read More
श्रवण कुमार पांडेय पथिक का रचना संसार सरेआम बाला को छेडा सरेआम बाला को छेडा,सिर जूतों की रेल चली,कभी गाल कभी सिर सहलाएं,मार खा रहे हैं दिलफेंक अली,,,,।दिल फेंक अली,दिल … Read More