तुलसीदास / बाबा कल्पनेश
तुलसीदास / बाबा कल्पनेश
तुलसीदास
विधा-मात्रिक सवैया(वीर छंद)16,15
राम चरित मानस की रचना,रच के तुलसीदास महान।
अमर हो गये इस धरती पर,मानवता का कर कल्यान।।
शिशुता बीती बहुत कठिन पर,जिस क्षण मिला संत का साथ।
रचने लगे सुमंगल दायक,अपने जीवन का वे गाथ।।
सीताराम नाम की माला,केवल जीवन का अध्याय।
रत्ना से खाए जब धक्का,एक यही जपते निरुपाय।।
जितने ग्रंथ लिखे सब में वे,राम नाम गायन संदेश।
पार कर गये भव सागर को,काटे अघ जीवन के क्लेश।।
जिस क्षण जन्में ठीक उसी क्षण,माता गईं स्वर्ग की ओर।
मुनिया के पालन-पोषण में,देखे निज जीवन के भोर।
वर्ष गये जीवन के दिन थे,पिता श्री का छूटा साथ।
दासी मुनिया भी कितने दिन,बनती भाग्य विधाता माथ।।
चित्त पड़ी थी एक दिवस वह,यमुना के तट अवघट घाट।
चढ़ा रामबोला था उस पर,दूध पी रहा पूरे ठाट।।
इसी दिवस से उसी गाँव में,बन कर वह रह गया अछूत।
लगा रामबोला था अब तो,पुरवासी को जैसे भूत।।
सहसा कुलगुरु नरहरि आए,देखे बड़ा अमंगल भाव।
पूँछे-देखे ब्राह्मण बालक,लेकिन बहुत बुरा बर्ताव।।
पास बुलाकर दुलराए वे,लेकर गये बनारस साथ।
मिली पाठशाला अब उसको,तत्क्षण बालक हुआ सनाथ।।
दोहा लिखे सोरठा छांदस,टूटा जीवन का अवरोध।
सद्गुरु कृपा हुई अपरमित,लगा जागने जीवन बोध।।
बेपटरी की गाड़ी अब तो,पटरी पर दौड़ी अति वेग।
सारा भारत न्यौछावर अब,छंद मांगते अपना नेग।।
रामचरितमानस की रचना,चाहे कवितावली विशेष।
सब में रामकथा का गायन,रंच मीन ना जानें मेष।।
राजमार्ग निर्मित भवसागर,जागृत जिनका हुआ विवेक।
दुस्तर भव सागर से लेते,पार उतर जाने का टेक।।
श्री गीता कुटीर-12,गंगा लाइन,स्वर्गाश्रम-ऋषिकेश
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