तुम्हारी तोतली बोली / पुष्पा श्रीवास्तव शैली
तुम्हारी तोतली बोली / पुष्पा श्रीवास्तव शैली
तुम्हारी तोतली बोली
जब धीरे धीरे बदलने लगी
साफ आवाज में ,
तब भी मैं डरी।
तुम्हारे नन्हे कदम जब
बिना मेरे सधने लगे
तब भी मैं डरी।
तुम्हारी आंखों में
मैंने काजल के कोरो को
जब जगह बनाते देखा
तो भी मै डरी।
तुम जब पहली बार गुलाबों
के गुच्छे अपने लंबे बालों में
सजा कर आई
तब भी डरी।
मैंने सोचा
मै तुम्हे पंख दे दूं
तुम उडो,
जहां तुम्हे कोई छू न सके।
मैंने सोचा वो आसमां
गढ़ दूं,
जो तुम्हारी खुशियों का
चांद सहेज ले।
मै बार बार अपनी
पैनी निगाहों की कैची से
तुम्हारे रास्ते के बाड को
काटती रही।
लेकिन दुःख कि
तुम्हे वो बाड नहीं चुभते
तुम्हे वो क्यों नहीं दिखते?
मैंने देखा उन्ही बाड़ों के
बीच तुम्हे लहूलुहान होते हुए
और मुस्कुराते हुए।
मेरे रोकने पर तुमने कहा
कि मैं प्रेम में हूं।
प्रेम?
मैंने भी तुमसे अगाध प्रेम किया,
मैं रात रात सोयी नहीं।
तेरे हंसने भर से
जीवन को धन्य समझा।
खून निकाल देने वाला
ये कैसा प्रेम?
ठीक तू इसे ही प्रेम मानती है
तो मान।
लेकिन प्रेम में मरने वाली लड़कियों
पहले प्रेम में जीना सीखो।
तुम्हारे मरने के बाद भी
एक प्रेम जी जी कर मरता है
वो है मां।
पुष्पा श्रीवास्तव शैली
रायबरेली उत्तर प्रदेश