वसंत | बी.के. वर्मा ‘शैदी’

वसंत

इत-उत, जित-जित ओर चितै,खिलै चित,
प्रकृति-रचित कन-कन में वसंत है।
वन-उपवन,कलियन औ’ सुमन मांहिं,
अवनि,गगन में,सबन में वसंत है। साँस-साँस मधुमास की सुवास कौ निवास,
मन में,बदन में,दृगन में वसंत है। पीत रंग,प्रीति की उमंग भरै अंग-अंग,
कंत रसवंत की छुअन में वसंत है।।
2.
अंग-अंग बहुरंग,प्रीति की उमंग संग,
पिय-संग हिय-गंग में उठी तरंग है।
पिय के परस ते,सरस हिय बरबस,
अंग-अंग में अनंग भरत उचंग है। फूलन पै जोबन है,बागन में बांकपन,
गुंजत भ्रमर अरु कूकत विहंग है। देत है अनंद,मंद-मंद सी सुगंध अति,
दिग में,दिगंत में,वसंत की उमंग है।।

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