विरह गीत – दुर्गा शंकर वर्मा “दुर्गेश” | virah geet

विरह गीत – दुर्गा शंकर वर्मा “दुर्गेश” | virah geet

प्रस्तुत गीत  वरिष्ठ गीतकार दुर्गा शंकर वर्मा “दुर्गेश”  के   द्वारा स्वरचित रचना  विरह गीत में प्रेमी और प्रेमिका  के   भाव से परिपूर्ण  है ,  हाथों के कंगन की ध्वनि, तुझको बुलाती है..  पंक्तिया जो गीत को एक नया आयाम दे रही है हमें आशा है  कि यह गीत पाठको को जरूर पसंद आएगा।

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विरह गीत 


तुम मेरा श्रृंगार हो,
तुम ही मेरा प्यार हो।
तेरा बिन सजना मुझे
तेरी याद आती है,
क्या बताऊं रात ये,
कितना सताती है।

चांद आता जब गगन में,
तारे चमके हैं मगन में।
दिल की धड़कन तेज बढ़ती,
भंवरे उड़ते जब चमन में।

मेरी पायल ही मुझे,
ताने सुनाती है।
क्या बताऊं रात ये,
कितना सताती है।

आता जब बरखा का मौसम,
चलती हैं ठंडी हवाएं,
मुझको लगता है सदा ही,
ये तुम्हारे गीत गाएं।

ठंडी-ठंडी ये पवन,
तन छू के जाती है।
क्या बताऊं रात ये,
कितना सताती है।

रात नागिन सी है दिखती,
मुझको आ-आ करके डसती।
ठंडी चलती है पवन जब,
सरसराहट सी है उठती।

हाथों के कंगन की ध्वनि,
तुझको बुलाती है।
क्या बताऊं रात ये,
कितना सताती है।

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दुर्गा शंकर वर्मा “दुर्गेश”

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